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जन्मदिन का तोहफा
जन्मदिन मनाने की प्रथा अत्यंत प्राचीन एवं पारम्परिक प्रतीत होती है। यह दीगर बात है कि केवल समाज के श

बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है
आजकल हिंदुस्तान में एक शब्द अत्यंत लोकप्रिय हो चला है, महानतम् नेता-अभिनेता से भी कहीं अधिक। चर्चित

नाखून वाला आधुनिक मानव
बचपन में हजारीप्रसाद द्विवेदी का एक लेख पड़ा था ÷नाखून क्यों बढ़ते हैं'। इसका संक्षिप्त में भावा

खेल-खेल में भारत
लंदन ओलंपिक हमारे लिये कम रोमांचभरा नहीं था। हिंदुस्तानी खेल-प्रेमी रोज आशा-निराशा में डुबकी लगाते र

सामाजिक क्रांति बनाम राजनीतिक आंदोलन
टीम-अन्ना के राजनैतिक रूपांतरण के विरोध में लिखे गये मेरे लेख पर सहमति-असहमति तो होनी ही थी। असहमत व

आंदोलन से समाज का हित-अहित
किसी आंदोलन की सफलता-असफलता, समय-काल और समकालीन परिस्थितियों पर निर्भर करती है। मगर समाज को होने वाल

विचारों की आपाधापी
इलेक्ट्रॉनिक सोशल नेटवर्क साइट पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अहसास किया जा सकता है। यह आम से खास के

आधी आबादी आधी जगह
जो कुछ भी गुवाहाटी की सड़कों पर हुआ वह किसी भी मानवीय समाज में स्वीकार्य नहीं हो सकता। यह सभ्य समाज

हल्का-फुल्का मनोरंजन
बिना कहानी के क्या किसी फिल्म का निर्माण संभव है? नहीं। बिल्कुल नहीं। हर जीवन की एक कहानी होती है तो

सभ्यता की आत्मा
किसी नगर, प्रांत, देश के बारे में सही-सही जानकारी प्राप्त करना, उनके रहन-सहन व जीवन को समझना एक बाहर