Poems





Manoj Singh Poems
लहरों संग चलते नहीं, दोनों खड़े किनारे, 
हमने तो अब छोड़ दी किश्ती, लहरों संग सहारे । 
मिटा रहे थे नाम मेरा, छुप कर हाथ तुम्हारे, 
उन्हीं हथेली की रेखा में, बसते प्राण हमारे।
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मंजिल जो न पहुंचे कभी, उन रास्तों पर बढ़ने दो, मौत है तो क्या है, जीवन के साथ बहने दो, तुम तो कहते थे मुझे, चलना ही जिंदगी है, मंजिल पर पहुंचकर मुझे, मंजिलों के साथ चलने दो।
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रात के अंधेरे में मुझको डर लगता था,
सुबह के उजाले का हमेशा इंतजार रहता था,
कुछ कदम तुम साथ क्या चले,
रात का इंतजार होने लगा,
अब तो मुझको अंधेरे से प्यार होने लगा।
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जब भी देखोगे ख्वाब,
मुझको ही साथ पाओगे,
मेरी दी हुई यादें,
तुम्हे नींद से जगाएगी!
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विजयी मस्तक लिए निकल पड़ा हूँ,
दिल में उमंग है जोश है तूफ़ान है ,
बुलंद हैं इरादे न कोई अभिमान है।
विजयी....
अब न खत्म होगी मेरी भी पहचान ,
समय के पदचिन्हों में मेरा एक निशान।
विजयी.....