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दुनिया के सात आश्चर्य
यह सवाल काफी घिसापिटा और पुराना हो चुका है। फिर भी विभिन्न संदर्भों में आता रहता है। जबकि मजे की बात यह है कि इसका जवाब भी पूरी तरह सुनिश्चित नहीं। दुनिया के सात आश्चर्य का नाम पूछे जाने पर अकसर मतभेद हो जाता है। उत्तर देने वाले के हिसाब से इसमें फेरबदल की गुंजाइश बनी रहती है। यहां व्यक्तिगत पसंद-नापसंद का मामला बनता है। यकीनन हर एक के लिए आश्चर्य के पैमाने अलग-अलग हो सकते हैं। यही नहीं व्यक्ति के अतिरिक्त उसका देश, काल व परिवेश भी यहां महत्वपूर्ण हो जाते हैं। इस मुद्दे पर एकमत होने के उद्देश्य से कई प्रयास किए गए मगर सर्वसम्मति वाली बात कभी बनी नहीं। विकसित देशों ने अपनी बात थोप कर अन्य से इसे मनवा तो लिया फिर भी असहमति बनी रहती है। यही कारण है कि कइयों ने इसी चक्कर में अपनी दुकान भी चला ली। और नये नामकरण के नाम पर लाखों-करोड़ों कमा भी लिये। इन सबके बावजूद फिर भी कुछ नाम दशकों से इस सूची में अपना स्थान सुनिश्चित करते आए हैं। मिश्र के पिरामिड और चीन की दीवार इनमें प्रमुख हैं। ये अति प्राचीन हैं और वास्तव में भी आश्चर्य और कौतूहलता पैदा करते हैं। मिश्र के पिरामिड जहां अपने अंदर छिपाए अति प्राचीन सांस्कृतिक विरासत को लेकर सुनने और देखने वालों के बीच उत्सुकता का कारण बनते हैं, वहीं यह सुनकर हैरानी होती है कि अंतरिक्ष से चीन की दीवार ही एकमात्र मानव निर्मित आश्चर्य है, जो दिखाई देता है। ताजमहल, हिन्दुस्तान में मुगल साम्राज्य के गौरवपूर्ण इतिहास का प्रतीक हो या एक सम्राट का पत्नी प्रेम, यह भी अपना स्थान इस सूची में बना ही लेता है। पीसा की मीनार, बेबीलॉन का झूलता उपवन, ओलंपिया में जियस की मूर्ति, जार्डन में पेट्रा, ब्राजील में ईसा मसीह की विशाल मूर्ति, माचू-पिच्चू का देवालय, रोम में कोलोसियम इत्यादि कई नाम हैं जो समय-समय पर अपनी ओर ध्यान आकर्षित करते हैं। मतभेदों को कम करने के उद्देश्य से ही काल के हिसाब से अलग और प्रकृति व मानव निर्मित आश्चर्यों की अलग-अलग सूची बनाई गई। फिर भी इस पर भिन्न-भिन्न मत उभरते रहते हैं।
दुनिया के सात आश्चर्यों के सवाल बच्चों से स्कूलों में अक्सर पूछे जाते हैं। अब यह एक काल्पनिक कहानी है या वास्तविकता, पता नहीं। विगत सप्ताह पटना से कॉलेज के जमाने के एक मित्र द्वारा एक मेल भेजा गया, जिसने मुझे प्रभावित किया। जिसके कथा अनुसार, एक कक्षा में उपरोक्त सवाल पूछने पर मिलने वाले जवाब में अधिकांश ऊपर दिए हुए पुराने नाम थे। छात्रों ने अपनी-अपनी सूचना अनुसार नाम लिखे जिनमें सभी पाठ्य-पुस्तक की सूची में से ही थे। एक छात्रा ने बहुत देर तक जब अपना पर्चा जमा नहीं किया तो शिक्षिका ने उसके पास आकर पूछताछ की थी। छात्रा ने हिचकते हुए जवाब दिया था कि वह कुछ एक आश्चर्य तो लिख चुकी है मगर उसकी बात अभी खत्म नहीं हो पायी। शिक्षिका ने इस सांत्वना के साथ पर्चे को वापस लिया कि जितना भी कुछ वह लिख चुकी है वही काफी होगा। मगर उत्तर पढ़कर हैरान हुई थी। होना लाजिमी भी था चूंकि छात्रा ने सात आश्चर्य की सूची कुछ इस प्रकार दी थी- दृष्टि : आंखों से देखना, श्रवण : कानों द्वारा सुनाई देना, स्पर्श : छूने का अहसास; स्वाद इंद्रिय : भोजन का स्वाद; सूंघने की इंद्रिय : सुगंध का आनंद; प्रेम : मानवीय संवेदना और अंत में भावनाओं का प्रदर्शन : हंसना-रोना इत्यादि।
पहले तो यह उत्तर अत्यंत साधारण-सा दिखाई देता है मगर कुछ देर सोचते ही और अधिक सोचने के लिए मजबूर करने लगता है। शिक्षिका भी इस उत्तर से हतप्रभ थी। मेरी तरह अन्य पाठक भी कुछ देर के लिए रुके होंगे यह पढ़कर। सभी के लिए यहां एक संकेत छिपा है। यहां शिक्षा भी है और ज्ञान व दर्शन भी। छात्रा ने जाने-अनजाने में ही सही जो भी कुछ सोचा और लिखा, वो कहीं से भी गलत नहीं लगता। क्या यह सब अद्भुत नहीं? पूरी सृष्टि को अपनी आंखों से देख पाना और उसकी विशालता, विविधता और विपुलता को देखकर समझ पाना, क्या आश्चर्य की बात नहीं है? नवजात शिशु के स्नेहपूर्वक स्पर्श मात्र से माता-पिता जहां प्रफुल्लित हो जाते हैं वहीं स्त्री-पुरुष संबंधों में यही स्पर्श, देह के अलौकिक आनंद की अनुभूति देता है। यही क्यों, किसी भी पालतू जानवर को प्यारपूर्वक सहलाने मात्र से वह प्रेम में वशीभूत हो जाता है और उसकी आंखों में प्यार की भाषा को आसानी से पढ़ा जा सकता है। स्वादिष्ट भोजन के सुगंध मात्र से मन खाने के लिए विचलित हो उठता है तो सुगंधित वातावरण मन को भाव-विभोर कर देता है। भूख लगी हो तो सादा भोजन ही सही, इसके खाने के बाद प्राप्त हुआ संतोष व तृप्ति का वर्णन संभव नहीं। और फिर कर्णप्रिय संगीत तो मन को मदमस्त कर देता है। तभी तो चिड़ियों की चहचहाट ही क्यों, कोयल की कूह-कूह, झरने की झंकार, बरसात में पानी की बौछार, जंगल में दूर किसी एकांत स्थान पर एक बूंद का टपकना भी कानों को कितना प्रिय लगता है। प्रकृति अपने स्वरूप में संगीतबद्ध है फिर चाहे वो बिजली की कड़कड़ाहट ही क्यूं न हो। वो दीगर बात है कि हम डर जाते हैं क्योंकि हम मौत से भयभीत रहते हैं। जब आप अपने पालतू जानवर को उसके नाम से पुकारते हैं तो वह मुड़कर आपकी ओर देखता है। प्यार से बोले गए शब्दों की सकारात्मक ऊर्जा से पत्थर दिल वाला भी आपकी ओर आकर्षित होता है। यह सब क्या आश्चर्य की बातें नहीं हैं? यह सूची बहुत लंबी हो सकती है। प्रकृति अपने आप में एक रहस्य है और उसकी हर कृति आश्चर्य से परिपूर्ण। इससे बड़ा आश्चर्य क्या हो सकता है, जब हम छोटे से बीज से एक विशाल वृक्ष को बनते हुए, समय के साथ-साथ धीरे-धीरे बढ़ते हुए देखते हैं। और फिर इस प्रक्रिया को महसूस भी करते हैं।
यकीनन छात्रा के उपरोक्त जवाब पर कई आपत्तियां दर्ज की जाएंगी और उनमें सबसे पहले होगी कि यह मानव निर्मित आश्चर्य नहीं है। यह सत्य है, मगर सवाल में भी मानव निर्मित आश्चर्य शब्द नहीं जोड़ा गया था। सच तो यह है कि आश्चर्य की बात सामने आते ही हम अपनी सूची लेकर बैठ जाते हैं। कहीं यह हमारा अहम् तो नहीं? इस पर एक लंबी वार्ता हो सकती है। कहा जाता है कि मनुष्य की उपलब्धियों पर हमें गर्व होना चाहिए। लेकिन छात्रा द्वारा जाने-अनजाने में ही दिया गया यह जवाब भी बिना कुछ कहे ही बहुत कुछ कह जाता है। क्या यह सच नहीं है कि हम प्रकृति द्वारा दी गई अनगिनत आश्चर्यों को भुलाए बैठे हैं? ये हमें अब आकर्षित नहीं करते। हमें अपनी बनाई ईंट-पत्थरों की खोखली दुनिया में ही भटकते रहने में मजा आने लगा है। और सदैव नवीनता से भरी प्रकृति पर ध्यान न देते हुए उनकी उपेक्षा करते हैं। जहां तक रही हमारे आश्चर्य की सूची तो उसको ध्यान से देखने पर एक चीज सामान्य रूप से दिखाई देती है, वो यह है कि इन सभी में आकार की विशालता है। हम मिट्टी और धातु में आत्मा खोजते हुए उन्हें विशाल मूर्ति और महलों का रूप देकर स्वयं की पीठ को थपथपाते हुए अकसर मिल जाएंगे। मगर साथ ही लाखों जिंदा मनुष्य को कभी धर्म के नाम पर, कभी युद्ध में तो कभी भूख से मरने के लिए मजबूर कर देंगे। पहाड़ों की चोटी पर किलों की ऊंची-ऊंची दीवारों को देखकर घरेलू सेनाएं फूली नहीं समाती थी, लेकिन अगर दोनों युद्धरत सेनाएं पर्वतों की नैसर्गिक ऊंचाई के सौंदर्य को देखें तो युद्ध करना भूल जाए। विशाल महलों के प्रांगण में घूमते राजा का मस्तिष्क हमेशा ऊंचा तना रहता था, मगर प्यार में डूबकर झोपड़ी और गरीब के घर नाक रगड़ते महाराजाओं को इतिहास ने खूब देखा है। आज के धनवान भी अपनी पूंजी का इजहार बड़ी-बड़ी इमारत बनाकर ही करते हैं। मगर इसमें हजारों का खून, पसीना बनकर दीवारों में चुना जाता है। लुटियन की दिल्ली में बनाया गया वाईसराय का महल ब्रिटिश हुकूमत की गौरव गाथा गाता था, यह हिन्दुस्तान की गुलाम जनता की समृद्धि की निशानी नहीं थी। कितने अमानवीय हैं मानव निर्मित आश्चर्य। इनमें किसी में भी हृदय का स्पंदन नहीं, उलटे शोषण व अत्याचार की एक लंबी कहानी मिल जाएगी। वैसे तो हमारे अनगिनत आश्चर्य मानवीय इच्छाशक्ति, कल्पना और साहस की कहानी के कुछ प्रमाण हैं। मगर इन पर इतना इतराने की आवश्यकता इसलिए भी नहीं, क्योंकि यह सब मानवीय गुण भी प्रकृति की ही देन हैं, जो स्वयं में एक आश्चर्य है। प्रकृति ने कई खेल रच रखे हैं। अपने से कई गुणा बड़े आकार का निर्माण या विध्वंस की बात करें तो दीमक स्वयं से कई लाख गुणा बड़ी इमारतों और फर्नीचर को नींव सहित खोखला कर देती है। जंगल में चींटियों के घर अगर किसी ने देखे हों तो वह उनके आकार के अनुपात में काफी बड़े होते हैं। पंछियों द्वारा बनाए गए, पेड़ों में लटकते खूबसूरत घोंसले आश्चर्य हैं या नहीं? मधुमक्खियों का बेहद कलात्मक, अनूठा व मधु के रस से भिगोया हुआ छत्ता, क्या मनुष्य बना सकता है? क्या यह अद्भुत निर्माण की प्रक्रिया नहीं? इनमें से शायद ही कोई खुद पर घमंड करता हो। जबकि उनके साथ प्रकृति की रजामंदी है, बल्कि हमारे आश्चर्य प्रकृति का विरोध करते प्रतीत होते हैं।
प्रकृति के आश्चर्य की सीमा नहीं। मनुष्य स्वयं में एक आश्चर्य है। वो अपने अहम् को पालता-पोसता रहता है। इस बात की उसे छूट दी गई, यह भी क्या आश्चर्य नहीं? मानव, पहले तो प्राकृतिक आश्चर्यों से डरता था इसलिए उनकी पूजा करता था, मगर थोड़ी-सी समझ के आते ही उसने प्रकृति के आश्चर्यों को तवज्जो देना बंद कर दिया। उलटे उसे सदैव दूषित करने का प्रयास किया। हमने ऐसे दृश्य पैदा किए जिन्हें हम देख नहीं सकते। दृष्टि ही नहीं हमने अपने दृष्टिकोण को भी प्रदूषित किया। हमने ऐसा शोर पैदा किया जिसे सुना नहीं जा सकता। दुर्गंध तो हम रोज अपने वातावरण में पैदा करते रहते हैं। प्रेम का अहसास अब कुछ रहा ही नहीं जिसकी अनुभूति हम कर सकें। विध्वंस का सारा सामान हमने इकट्ठा कर लिया और तबाही की कोशिश करते रहते हैं। फिर भी मानव जाति जिंदा है। क्या यह भी प्रकृति का एक और आश्चर्य नहीं है?