My Blog
Articles, Personal Diaries and More
छोटी-छोटी बातों में छिपा सुख
अमेरिका-चीन-पाकिस्तान के साथ हमारी कूटनीति से भरे पड़े लेखों के बीच ये छोटी-छोटी बातें अटपटी लग सकती हैं। आतंकवाद व नक्सलवाद से जूझ रहे राष्ट्र में इस तरह की बातें करना हास्यास्पद हो सकता है। मेकअप में लिपटी जीरो फिगर नायिका और छह-सात पैब्स के नायकों के बीच मीडिया में आम आदमी की बातें करना हास्यास्पद ही नहीं व्यर्थ भी लग सकता है। मगर फिर भी ये गुस्ताखी करने का जोखिम उठाने के पीछे एकमात्र कारण है कि बड़ी-बड़ी बातों से दिमाग ऊब चुका है और दिल मर चुका है, हो सकता है इन छोटी-छोटी बातों से ही संवेदना जाग उठे।
बाजार ने सौंदर्य का भी व्यावसायीकरण कर दिया, वरना आदिकाल से, युवावस्था में ही नहीं, पुरुष को नारी की सुंदरता को देखना सच पूछे तो हर उम्र में अच्छा लगता है। फिर चाहे वो आम साधारण महिला का सौंदर्य ही क्यूं न हो। यहां उत्पन्न हुए आकर्षण से लेकर जिज्ञासा, उत्सुकता, कौतूहलता सब कुछ प्राकृतिक है। नर द्वारा निहारा जाना अमूमन नारी भी पसंद करती है। सुंदर कपड़े-गहने-आभूषण, श्रृंगार सामग्री स्त्री की स्वाभाविक कमजोरी रही है। ये स्त्री किसी राष्ट्र की प्रमुख भी हो सकती है। सामाजिक मुश्किलों को दरकिनार करें तो बच्चों को बड़ा होता देख मां-बाप फूले नहीं समाते। यह सब हमारे नैसर्गिक भावनात्मक मानवीय स्वभाव के कुछ उदाहरण मात्र हैं, जो जन्म से हमारे साथ हैं। यही नहीं, ऊंचे पहाड़, अनंत आकाश, गहरा-शांत समुद्र, चंचल नदी, बीहड़ जंगल हमें हमेशा अच्छे लगते हैं। और प्रमाणित करते हैं कि हम मूल रूप से प्रकृति से जुड़े हुए हैं। समय और विकास के साथ हमने अपनी पसंद-नापसंद को विस्तार दिया और अपनी तरफ से भी इस सूची को लंबा किया। अच्छी नौकरी फिर पदोन्नति, साफ-सुथरा घर फिर आलीशान कोठियां, लंबा-चौड़ा बैंक बैलेंस और आधुनिक सुविधाएं आजकल किस को बुरी लग सकती हैं। बेटा हो या बेटी, बच्चों का हर प्रतिस्पर्द्धा में जीतना सभी को अच्छा लगने लगा। फिर चाहे काबिलियत हो न हो। लोकप्रियता फितरत बन गई और उसके लिए हम सब कुछ दांव पर लगाने को तैयार हो गए हैं। पैसा और मेहनत ही नहीं, इज्जत भी। मगर मानव निर्मित ये सब रास्ते क्षणिक व सीमित सुख देते हैं।
वैसे तो सृष्टि में स्थायी कुछ भी नहीं, मगर फिर भी कुछ दृश्य व घटनाक्रम सामान्य होते हुए भी ऐसे हैं जो सदा दिल को छूते हैं अलौकिक लगते हैं और कई मायनों में विशेष होते हैं। इसमें खुशी के अतिरिक्त सुख-शांति, संतुष्टि, संतोष और आनंद भी प्राप्त होता है। उत्पन्न हुई भावनाओं को कभी-कभी शब्दों में व्यक्त करना थोड़ा मुश्किल हो जाता है। इसका अनुभव करना चाहते हैं तो उदाहरणार्थ, रोजमर्रा की भागमभाग के बीच एक दिन अचानक सड़क पर रुक कर किसी अंधे बूढ़े/बच्चे को रोड पार करने में मदद कीजिए। और फिर कितना आत्मिक सुख प्राप्त हो सकता है? खुद महसूस कीजिए। रोड पर दुर्घटना होने पर कुछ एक आदमी मदद के लिए दौड़ पड़ते हैं। निःस्वार्थ, बिना सोचे-समझे। एक मनुष्य से ही ऐसी उम्मीद की जा सकती है। यही तो हमें जानवर होने से भिन्न करता है। एक बार मदद करके देखिए, इतना अच्छा लगेगा कि बयान करना मुश्किल है। अंधेरी रात में परेशान अकेली महिला को सुरक्षा, एक सच्चा पुरुष ही दे सकता है। उस औरत की आंखों में अनायास आपके लिए उपजे इज्जत को बाजार में यूं ही जाकर नहीं खरीदा जा सकता। मर्द होने का अभिमान करना चाहते हैं तो ऐसा एक बार करके देखिये। ख्याल रहे बदले में कुछ उम्मीद मन में भी मत रखिएगा, नारी पढ़ लेती है। किसी अनजान बूढ़े को सहारा देना, खाली समय में वृद्धाश्रम में जाकर उनके साथ समय बिताना, मानसिक रूप से विकलांग बच्चों-जवानों के साथ उछलना-कूदना और फिर इन लोगों को दो पल के लिए खुश होता देखना हमारे जीवन में भी खुशी भर देता है। यहां दूसरे के मनोरंजन में आपका मनोरंजन भी छिपा है और यह अमूल्य है जो बिना पैसे प्राप्त किया जा सकता है। इसके लिए पार्क, सिनेमा, मॉल, बाजार में जाने की जरूरत नहीं। यही नहीं नवजात शिशु को खेलते व सोते देखना बहुत अच्छा लगता है फिर वो इंसान छोड़ सूअर या शेर का ही बच्चा क्यूं न हो। किसी अनाथ मासूम दूध पीते बच्चे को गोद में उठाइए, बिना किसी स्वार्थ भाव के उसे प्यार करके देखिए, उसके चेहरे में साक्षात ईश्वर के दर्शन होंगे। उसकी निश्छल हंसी को देखने से होने वाले आनंद की व्याख्या मुश्किल है। मिलने वाली असीम शांति के बाद फिर किसी देवालय में जाने की आवश्यकता नहीं, किसी पूजास्थल में जाकर आंखें बंदकर कुछ ढूंढ़ने की आवश्यकता नहीं। ईश्वर को सच्चे दिल से याद करना, पूरी तरह निःस्वार्थ भाव से समर्पित हो जाना, आपके अहं को नष्ट कर देता है। आप अपना अस्तित्व तक भूल जाते हैं। फिर चाहे वो कोई भी हो। तभी तो जब एक गुनहगार अपने सभी गुनाहों को दिल से कबूल करता है और आंसुओं से रोता है। ऐसे शुद्ध होते दिल को देखना भी कम सौभाग्य की बात नहीं।
प्रकृति को उसके मूल रूप में देखना सदैव अच्छा लगता है। जब पेड़पर फल लगे हों, पौधे फूल से लदे हों, चारों ओर हरियाली हो, नदी में पानी हो, चांदनी रात हो, पहाड़ पर बर्फ हो, खेत में फसल हो, शांत वातावरण में चिड़ियों की चहचहाट हो, बादल और बरसात भी मन मोह लेते हैं। देह सौंदर्य की तरह यहां भी नयन सुख है। मगर प्रकृति विनाशकारी भी है। इसे हम स्वीकार करते हैं। शायद यह सृष्टि का संतुलन है। लेकिन फिर भी सूखा व बाढ़ से परेशान लोगों को घर से उजड़ता देख दुःख होता है। प्रकृति के इस विकराल रूप को पसंद तो नहीं किया जा सकता, ऐसे में एक-दूसरे की मदद ही हमारे सह-अस्तित्व की भावना को सुदृढ़ करती है। आत्मरक्षा के नाम पर यह प्रकृति को चुनौती भी है। मगर मनुष्य जनित विस्थापन अधिक दुःख देता है फिर चाहे वो राजनीतिक, सामाजिक या विकास के नाम पर हो। सब कुछ लुट जाता है जब आदमी अपने जमीन से उखाड़ दिया जाता है। ऐसे में किसी शरणार्थी को सहयोग करना मनुष्यता की निशानी है। किसी बेघर को छत देने से बड़ा धर्म नहीं हो सकता। प्राकृतिक आपदाओं में काम करने वाले लोगों से पूछो कि क्या ऐसा आत्मिक सुख कहीं और प्राप्त होता है? उत्तर मिलेगा, नहीं। और अगर आप भी ये सुख प्राप्त करना चाहते हैं तो पोस्टर, बैनर, मंच और संगठन से बचें, ये मूल भावना के स्वाद को नष्ट कर देते हैं। अब आपको किसी भूकंप और प्राकृतिक आपदा का इंतजार करने की जरूरत नहीं, मानवीय त्याग व सेवा की भावना का रसास्वादन करने के लिए गंभीर रूप से बीमार किसी अनजान गरीब की देखभाल व्यक्तिगत रूप से कीजिए। इससे बड़ा पुण्य नहीं हो सकता। यहां एक मिनट के लिए मानवता की तथाकथित परिभाषा भी छोड़ दें, इसमें भी कहीं न कहीं बुद्धि, तर्क और अहं आकर सात्विक भाव को दूषित कर देते हैं। निष्काम होकर कार्य करें फिर देखें अंदर से कैसा प्रेम उमड़ता है।
अभी कुछ दिन पहले एक महंगे और लोकप्रिय दुकान से मिठाई खरीद कर बेटी के साथ बाहर निकला तो इतने ऊंचे दाम के बावजूद खरीदारों की भीड़ देखकर हैरान हो रहा था। दुकान के बाहर, ठीक सामने, फुटपाथ के किनारे, एक पेड़ के नीचे, एक बूढ़ा टोकरी में केले बेच रहा था। उसकी सफेद खिचड़ी दाढ़ी के बीच पीली आंखों में आस और चेहरे पर उम्मीद उभरती और वह हर आने-जाने वालों को बड़ी आशाभरी निगाहों से देखता। बड़ी-बड़ी गाड़ियों में आने वाले ग्राहक उसकी ओर देख भी नहीं रहे थे। बेटी को पता नहीं क्या सूझा और उसने मुझसे अचानक केले खरीदने के लिए कहा था। कहा तो उसने दो-चार केलों के लिए ही था मगर न जाने क्यूं मैंने पूरे एक दर्जन खरीदे। मात्र तीस रुपए ही तो लगे थे। मिठाई की कीमत से मात्र दस प्रतिशत। इस दौरान मैंने छोटी-सी बच्ची और उस बूढ़े के चेहरे पर उभरते भावों को देखा, उसका यहां शब्दों में वर्णन संभव नहीं। यह अहसास के पल थे। यह सत्य है कि बच्चे बड़ों से ज्यादा संवेदनशील होते हैं। बच्चों और बूढ़ों में अमूमन साफ-सुथरी प्रेम की भावना होती है। एक अभी-अभी दुनिया में आया है जो अभी दूषित नहीं हुआ और दूसरा दुनिया देखकर जाने की तैयारी में है वो सब कुछ देख चुका।
विगत मास वैष्णो देवी के दर्शन करने के बाद नीचे कटरा में घूम रहे तेल मालिश वाले से मालिश के दौरान दो शब्द प्यार से बोलने पर वो खुश होकर अपनी राम-कहानी सुनाने लगा। यह दुखभरी थी। थोड़ा-सा अपनापन दिखाते ही वह दिल से सेवा करने लगा। उसकी गरीबी देख अतिरिक्त पैसा देने पर शायद वह खुश न होता। उसको सहयोग देने की खातिर मैंने अपने दो और साथियों को भी मालिश के लिए राजी किया। अतिरिक्त काम मिलने पर उसका चेहरे जिस तरह से खिल उठा, यहां वर्णन करना मुश्किल है। अगले दिन उसके घर में शायद दोनों वक्त चूल्हा जलेगा। व्यस्त चौराहे पर कार का शीशा नीचे कर के गरीब बच्चों को भीख देकर हम जिस सामाजिक कर्तव्य के निर्वाहन का सोचते हैं, वो गलत है। गलत तो नैतिक और कानूनी रूप से बाल मजदूरी भी है, मगर कभी किसी बूट-पॉलिश वाले छोटे से बालक से जूते साफ करा के देखना, उसकी आंखों में झांकना, वहां एक मेहनतकश का आत्मसम्मान दिखाई देगा। उसको काम के बदले पैसा देने के साथ-साथ सिर पर हाथ भी फेर कर देखिए, उन आंखों की चमक कहीं और देखने को नहीं मिलेगी।
उपरोक्त सभी घटनाक्रम व कर्म अत्यंत साधारण हैं। सरल हैं। सहज हैं। दृश्य आम हैं मगर अच्छे लगते हैं। दिल को सुकून देते हैं। और फिर इसके लिए लाखों-करोड़ों रुपए की जरूरत नहीं। किसी ऊंची इमारत, बड़ी संस्था, दान-दक्षिणा या भारी-भरकम शब्द ÷चेरिटी’ की आवश्यकता नहीं। सच है, पॉवर या पैसों से किसी की पीड़ा को नहीं खरीदा जा सकता, न ही इसे कम किया जा सकता है। स्वयं के लिए सुख व आनंद भी नहीं खरीदा जा सकता। यह क्षेत्र है मानवीय संवेदना का, अपनेपन का। एक पल का सच्चा साथ जीवन में उमंग भर सकता है। किसी को बिना शर्त प्रेम करना, ईश्वर पाने के समान है। कितना अच्छा लगता होगा? जानने के लिए खुद करके देखिए। इन छोटी-छोटी बातों से जो सुख मिलता है उसका कोई मूल्य नहीं। ध्यान रहे, इस दौरान आपके दिल की धड़कन जिंदा होनी चाहिए। मशीन या मृत शरीर भावनाएं नहीं पैदा कर सकतीं।