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हम कैसे भविष्य की कल्पना करते हैं?
चलिए, हम कुछ सवाल पूछते हैं। जवाब देने वालों में बच्चे-बूढ़े, जवान-अधेड़, अमीर-गरीब, शहरी-ग्रामीण, महिला-पुरुष और अनपढ़-पढ़े लिखे अर्थात सभी वर्गों के लोग शामिल किए जाएं तो बेहतर होगा। यकीनन ये सवाल एकदम सरल होंगे इसके बावजूद जिनके जवाब हमें नहीं आएंगे, आदतन उन्हें हम बेवकूफी भरा घोषित कर देंगे। बहरहाल, इन सवालों के औचित्य पर प्रारंभ में ही चर्चा न करें तो बेहतर होगा। सारे जवाब आने पर ही विश्लेषण करना उचित होगा। पहला सवाल, किसी पांच फिल्मी हीरो का नाम बताएं? जवाब देना सभी के लिए आसान होगा। तीन नाम तो खान ही जो जाएंगे, आमिर-शाहरुख-सलमान। बाकी बचे दो? दिलीप कुमार, अमिताभ बच्चन, राजेश खन्ना से लेकर रितिक रौशन, अक्षय वगैरह-वगैरह। सैकड़ों नाम हैं। हर एक व्यक्ति पांच की जगह दस नाम लिख देगा। दूसरा सवाल, पांच अभिनेत्रियों के नाम? यह तो और भी आसान है। हेमा, रेखा, जीनत, राखी, शर्मिला से लेकर श्रीदेवी, कैटरीना, करीना, काजोल, करिश्मा, दीपिका और न जाने कितने नये नाम लिख दिए जाएंगे। इनकी संख्या यकीनन अनगिनत हो सकती हैं। सभी वर्ग के लोग इसे बड़ी आसानी से हंसते-हंसते लिखेंगे। अपनी-अपनी पसंद से चेहरे पर हल्की-सी मुस्कुराहट भी होगी। पांच आइटम गर्ल का नाम पूछने पर तो कइयों के गालों पर ललाई उभर आएगी। तुरंत राखी सावंत, बिपाशा बासु, मल्लिका शेरावत से लेकर मलायका अरोड़ा खान, हेलन जैसे कई नाम लिखे जाएंगे। इनमें से कई नाम हीरोइन की सूची में भी मिल सकते हैं। इन नामों के साथ बूढ़े और युवाओं की आंखों में चमक देखी जा सकती है। पांच क्रिकेटरों का नाम पूछने पर सभी लोग ऐसे जल्दी-जल्दी जवाब देंगे कि मानो कक्षा का हर छात्र अव्वल अंक से पास होकर प्रथम आना चाहेगा। सचिन, धोनी, गावस्कर, पठान, युवराज ये तो बहुत कम नाम हुए और इसी तरह के न जाने दसियों नाम और हो सकते हैं। यहां भी एक की जगह दस नाम दिए जा सकते हैं। हां, पांच राजनीतिज्ञों के नाम पूछने पर भी कोई खास परेशानी नहीं होगी। शहर से लेकर गांव-गांव व कस्बों में सैकड़ों नाम मिल जाएंगे, जो रोज किसी न किसी तरह से सुनाई व दिखाई पड़ते रहते हैं। किसी एक का नाम यहां लेना ठीक नहीं। गिनती इतनी ज्यादा है कि पूछो नहीं। आजकल हर गली में एक नेता है।
अब हम इसी प्रक्रिया को आगे बढ़ाते हैं। पांच वैज्ञानिकों का नाम पूछने पर सवाल मुश्किल लगेगा। हो सकता है कुछेक पढ़े-लिखे लोग जवाब दे भी दें। मगर दिये गए अधिकांश नाम पुराने और विदेशी होंगे। लेकिन भारतीय वैज्ञानिक के नाम पूछने पर तो लोग बगले झांकने लगेंगे। पांच छोड़िए एक का नाम भी बहुत मुश्किल से याद आएगा। अर्थात तकरीबन सारे फेल। पांच महान दार्शनिक के नाम जानना चाहेंगे तो यह अति मुश्किल होगा। वर्तमान भारतीय विचारक का नाम पूछने पर तो लोगों को इंटरनेट पर ढूंढ़ना पड़ेगा। पांच समाजसेवी का नाम पूछने लगें तो यह शब्द ही कुछ लोगों के लिए अटपटा होगा। ऐसे में उत्तर की उम्मीद करना ही गलत होगा। हां, पढ़ा-लिखा उच्च वर्ग कुछ एक एनजीओ के नाम ले सकता है। बाकी इससे अनजान होंगे। पांच फिल्मी गीतकार का नाम शायद अधिकतर लोग बता दे परंतु पांच लेखक-साहित्यकार के नाम पर अधिकांश लोग सड़ा-सा मुंह बनाएंगे। पांच चित्रकारों के नाम पूछने पर, एक-दो नाम, विवादास्पद सनसनी के कारण, कुछ एक बता भी दें, मगर फिर आगे की सूची रिक्त ही होगी। पांच नृत्य करने वालों के नाम पूछने पर फिल्मी डांसर के नाम तो दसियों बता दिए जाएंगे लेकिन भारतीय शास्त्रीय नृत्यांगनाओं के बारे में हमारा युवा वर्ग पूरी तरह से अनजान मिलेगा।
अब इस स्थिति को क्या कहेंगे? क्या हम जानते हैं कि पिछले पांच वर्षों में भारतीय सिविल परीक्षा का टॉपर कौन-कौन रहा है? आईआईटी और आईआईएम की प्रवेश परीक्षा में विगत पांच वर्षों के टॉपर के नाम हम में से किसी को भी नहीं पता होंगे। यह पूछने पर कि कंप्यूटर के क्षेत्र में किस-किस भारतीय का योगदान है? कंप्यूटर का दिनभर उपयोग करने वाले भारतीय युवा वर्ग में भी शायद ही कुछ लोग इसका जवाब दे पाएं। धन्य हो स्थानीय पत्रकारिता जिसके कारण हम यह तो जानते हैं कि हमारे शहर से फलां फलां लड़का-लड़की, अमुक अमुक रिएलिटी शो में भाग लेने गया हुआ है या ले रहा है। मगर क्या हम कभी भी जान पाएं हैं कि हमारे शहर से पढ़ाई के क्षेत्र में, राष्ट्रीय चयन प्रतियोगिता या वैज्ञानिक खोज प्रतियोगिता या चित्रकला/वाद-विवाद, नाटक में भाग लेने के लिए कोई लड़का-लड़की जा रहा है या गया है? नहीं। ये सभी सवाल अधिकांश वर्ग के द्वारा मुश्किल से दिए जाएंगे। इन तथ्यों से हम अनजान होंगे।
विडंबना यहीं खत्म नहीं होती, अगर हम लोगों से पांच डॉन के नाम पूछने जाएं तो ज्यादा मुश्किल नहीं होगी। और चमकते सितारों की तरह पेपर में रोज छपने वाले ये नाम आसानी से दिए जाएंगे। और तो और पांच आतंकवादियों के नाम भी बताने हों तो भी ज्यादा कठिनाई नहीं होगी। बच्चों-बच्चों की जुबान पर कुछेक नाम पूरी तरीके से रटे हुए मिलेंगे। लेकिन इन आतंकवादियों से लड़ते-लड़ते शहीद हुए पांच जवानों/अधिकारियों के नाम किसी को भी याद नहीं होंगे।
वाह रे! हमारे प्रचारतंत्र का मायाजाल। और ज्ञान व सूचना का तथाकथित अथाह समुद्र। इन सवालों के जवाब से कई सारे सवाल पैदा होते हैं और कई तरह के जवाब हमें अपने आप मिल जाते हैं। यह इस बात का भी संकेत करते हैं कि हमारी मानसिकता क्या बनाई जा रही है? समाज का बौद्धिक स्तर क्या है और किस दिशा में है? हमारे आदर्श अप्रत्यक्ष रूप से किन्हें बनाया जा रहा है? हम क्या चाहते हैं और भविष्य में अपने समाज की कैसी संरचना की उम्मीद करते हैं? मतलब इन जवाबों में ढूंढ़े जा सकते हैं। यहां गलत और सही, अच्छे और बुरे की सिर्फ बात नहीं की जा रही। क्षेत्र कोई भी हो, गैर-कानूनी कार्य करने वाले के अतिरिक्त, सभी क्षेत्र में शीर्ष पर होने वाले व्यक्ति में कोई न कोई खास बात तो होती है। कुछ न कुछ प्रतिभा व विशिष्टता होती है कि जो वो चोटी पर पहुंचता है। फिर चाहे वो फिल्म हो, आइटम डांस हो या फिर क्रिकेट का बल्ला घुमाना ही हो। यहां तक कि राजनीति भी। लेकिन सवाल उठता है कि बाकी बचे क्षेत्र की क्या स्थिति है? इनमें आपस में इतनी असमानता क्या ठीक होगी? क्या यह हमारे समाज में संतुलन को बिगाड़ नहीं रहा? क्या इसका मतलब यह प्रदर्शित करना नहीं हुआ कि हम हर लड़के को फिल्मी हीरो या क्रिकेटर बनाना पसंद करते हैं? और मीडिया के स्वाद का अंदाज लगाया जाये तो हर लड़की को मॉडलिंग, फिल्मी आइटम डांस करते हुए फिल्मी नायिका बनने का प्रयास करना चाहिए। अप्रत्यक्ष रूप से युवावर्ग को क्या हम यह नहीं कहना चाहते हैं कि यही हमारे लक्ष्य हैं? हम चाहे जितना भी इसको झुठलाने की कोशिश करें पर युवा वर्ग में जाने-अनजाने ही ये आदर्श बन बैठे हैं। यहां कहने का तात्पर्य यह नहीं कि इस क्षेत्र में युवक-युवतियों को नहीं जाना चाहिए। लेकिन कल्पना करें हर युवा खेल और नाटक कंपनी को अपने भविष्य का करिअर बना ले और कोई भी सेना में, पुलिस में, प्रशासन में, न्यायिक व्यवस्था में, साहित्य, संस्कृति, विज्ञान, चिकित्सा में न जाना चाहे तो यह देश व समाज कैसे चलेगा? कल्पना कीजिए सभी एक्टर और खिलाड़ी बन जाए या बनने की तमन्ना करें तो भविष्य का समाज कैसा होगा? वैसे भी क्या सभी इन्हीं क्षेत्र में जा सकते हैं? और फिर यकीन मानिए, जो युवा वर्ग खिलाड़ी या हीरो नहीं बन पाएगा वो अन्य कार्य में पूर्ण संतुष्ट कभी नहीं होगा। और ऐसे में वह जीवनभर कहीं न कहीं अपने आप को दोयम दर्जे का महसूस करेगा। क्या हम भविष्य के नागरिक को काल्पनिक जीवन जीने वाला और जीवन को खेल समझने वाला बना देना चाहते हैं? क्या हम राष्ट्र को मौज-मस्ती में डुबो देना चाहते हैं? क्या हम जीवन की हकीकत से भागना चाहते हैं? या जीवन को एक नाटक बनाना चाहते हैं? कहीं समाज और परिवार को रंगमंच बनाना तो नहीं चाहते? हो सकता है, पता नहीं। लेकिन उपरोक्त जवाब इस बात का संकेत जरूर करते हैं।
विकसित सभ्यताओं में यही फर्क है। वहां हर काम की पहचान होती है। चित्रकार और लेखक भी इज्जत, पैसा और नाम कमाता है। जरूरी नहीं कि यह एक फिल्मी हीरो के बराबर ही हो। मगर वह दूसरों से किसी भी रूप में अपने आप को कम नहीं महसूस करता। समुद्र में नीचे उतरकर महीनों-सालों जीव-जंतुओं की खोज करने वाला, रेगिस्तान में धूल खाने वाला, पहाड़ की चोटी पर पर्वतारोहण करने वाला भी समाज में अपनी पहचान रखता है। अन्य खेल का खिलाड़ी भी पैसा कमाता है। हो सकता है ये बास्केटबाल, बेस बाल और टेनिस के बराबर न हो। मगर एथलीट और तैराकी की भी खेल जगत में बराबर से पूछ होती है। इनके बैंक खातों के आंकड़ों में कम ज्यादा हो सकता है, मगर इज्जत में कमी नहीं। विज्ञान की खोज करने वाले, चिकित्सा वैज्ञानिक, अनुसंधानकर्ता, अंतरिक्ष वैज्ञानिक, भूगोल शास्त्री, समाज में हर एक का रुतबा है। हर क्षेत्र की अपनी एक पहचान है।
शरीर के सर्वांगीण विकास के लिए मन-मस्तिष्क एवं शरीर के हर अंग का स्वस्थ और क्रियाशील होना आवश्यक है। समाज उन्नति करे, इसके लिए आवश्यक है कि उसके हर क्षेत्र की, हर वर्ग की उन्नति हो, इज्जत हो। किसी एक क्षेत्र को बहुत अधिक भाव देकर हम न केवल असमानता पैदा करते हैं बल्कि अन्य क्षेत्रों में हीन भावना भी उत्पन्न करते हैं। भारत को अगर वास्तव में एक विकसित, शक्तिशाली, समृद्ध और आत्मनिर्भर राष्ट्र बनाना है तो उसे हर क्षेत्र के शीर्ष पैदा करने होंगे। सिर्फ कुछेक ट्रेलर दिखाने से फिल्म कभी नहीं बनती। हिट फिल्म के लिए हीरो-हीरोइन ही नहीं लेखक, निदेशक, फोटोग्राफर से लेकर स्पॉट ब्वाय तक सभी का हिट होना जरूरी है। इस परेशानी को दूर करने के लिए सिर्फ मीडिया और बाजार से उम्मीद करना ठीक न होगा। जबकि इस असंतुलन का अधिक दोष उनका ही है। समाज को इस बारे में स्वयं पहल करनी होगी।