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आधुनिक संसार में अमानवीयता
पाकिस्तान के उत्तर में स्थित स्वात घाटी बेहद खूबसूरत है। एक रमणीक स्थल। देखने वालों ने बतलाया कि प्राकृतिक सौंदर्य यहां अपने चरम पर है। यही कारण है कि इसे पाकिस्तान का स्विट्जरलैंड कहा जाता है। किसी समय देश ही नहीं विदेशों में भी पर्यटन की दृष्टि से यह एक महत्वपूर्ण स्थल के रूप में प्रसिद्ध था। अब ऐसा नहीं है। प्रकृति तो अब भी अपने यौवन पर है बस इंसान और उसकी व्यवस्थाओं के कुछ अशांत होने से लोगों ने वहां जाना छोड़ दिया। आज, नार्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रांविन्स का एक जिला, 1969 में पाकिस्तान में पूर्ण विलय के पूर्व यह एक प्रिसंली स्टेट थी। हिन्दू-कुश पर्वत श्रृंखलाओं में, ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों के बीच, साफ और सुंदर झील, चारों ओर हरे-भरे वृक्ष, कहा जाता है कि यहां का दृश्य अद्भुत होता है। एक सुंदर पेंटिंग्स की तरह। स्वात नदी का जिक्र ऋग्वेद में भी आया है। यह ऊंची पर्वत श्रृंखलाओं से निकलकर कलाम घाटी से होते हुए पेशावर घाटी में काबुल नदी में जाकर मिल जाती है। दो हजार वर्ष से भी अधिक पुरानी सभ्यता व शहर प्रारंभ में एलेग्जेंडर महान की महत्वकांक्षा के क्षेत्र में रचा बसा। ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में मौर्य शासन और फिर दूसरी शताब्दी के आते-आते बौद्ध धर्म ने पूरे क्षेत्र को अपने प्रभाव में ले लिया था। बौद्ध भिक्षुक यहां की असीम शांति और स्वच्छ वातावरण के कारण आकर्षित हुए होंगे। सैकड़ों वर्षों के प्रभाव के दौरान कई बौद्ध स्तूप व मोनेस्ट्रीज (मठ) बनाई गई। यह क्षेत्र बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए लोकप्रिय धार्मिक यात्रा का केंद्र रह चुका है। मान्यता है कि गौतम बुद्ध यहां स्वयं पधार चुके हैं। उसके पश्चात हिन्दू शाही राजवंश ने शासन किया और इन्होंने अपने शासनकाल के दौरान कई मंदिर बनवाए। अब कुछ एक के अवशेष भी शायद ही बचे हों। वे भी आज जीर्ण अवस्था में हैं। संस्कृत यहां की मुख्य भाषा रही है। पहले बुद्ध फिर हिन्दू और दसवीं शताब्दी के आते-आते इस्लाम का आगमन हुआ। 1023 ईसवी में महमूद गजनी ने अंतिम बौद्ध राजा को पराजित कर इस्लाम धर्म को यहां प्रचारित किया और तब से इस्लाम यहां पर स्थापित है।
विगत कुछ समय से यह क्षेत्र सुर्खियों में है। कुछ विशिष्ट धार्मिंक संस्थाओं की कट्टरता के कारण क्षेत्र अशांत है। यहां अन्य धर्मों का अब कोई अस्तित्व नहीं। धर्मनिरपेक्ष शब्द का यहां कोई औचित्य नहीं। अशांत और अनियंत्रित परिस्थितियों को नियमित करने के उद्देश्य से पाकिस्तान सरकार ने स्थानीय तालिबान से समझौता जरूर किया है। मगर यह एक बहस का मुद्दा बन सकता है। और कुछ-कुछ बना भी। विश्व में इसकी प्रतिक्रिया हुई। संदेह भी प्रकट किया जा रहा था। इसी बीच विगत सप्ताह एक लड़की पर कोड़े बरसाने वाले दृश्य ने हलचल पैदा कर दी। मीडिया में आते ही इसने विश्व का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। जिसने भी देखा उसकी आंखें फटी रह गयीं। परिणामस्वरूप तीखी आलोचना शुरू हुई। और फिर अचानक इस क्षेत्र के संदर्भित संगठन के सूत्र, कहीं-कहीं, यह बतलाने की कोशिश करने लगे कि जो भी कुछ दिखाया जा रहा है वो सब गलत है। कुछ एक ने लड़की की उम्र पर भी बहुत कुछ कहा, बताया गया कि यह महिला अधिक उम्र की है और किसी पराये पुरुष के साथ रह रही थी। किसी-किसी ने तो इस घटना को ही नकार दिया और कह दिया कि ऐसा कुछ हुआ ही नहीं। सुनने में यहां तक आया है कि उस लड़की ने अधिकारियों को कहा है कि ऐसा कुछ भी उसके साथ नहीं हुआ है और ये सब गलत दिखाया जा रहा है। काश! यही सत्य हो। मगर देखने व सुनने वाले सामान्य जन को इस सफाई पर विश्वास नहीं हो रहा और लोग डरे व सहमे हैं। समझ नहीं पा रहे कि आज के युग में यह कैसे संभव है। और फिर संशय में ही विरोध, अपने-अपने ढंग से कर रहे हैं।
स्वात घाटी में रहने वाले लोग यहां की प्रकृति की तरह ही स्वस्थ और सुंदर हैं। युगों-युगों से प्रकृति ने अपनी खूबसूरती यहां बिखेर रखी है। सदियों से पेड़ों पर फल और पौधों पर सुंदर-सुंदर फूल खिलते चले आ रहे हैं। स्वात नदी शुद्ध जल के साथ स्वतंत्र रूप में आदिकाल से बह रही है। यहां पाये जाने वाले जानवर से लेकर पशु-पक्षी भी सभी मदमस्त होकर आनंद में जीवन व्यतीत कर रहे होंगे। एक मनुष्य ही है जो आज यहां दुखी और सहमा हुआ है। मानवीय सभ्यता और संस्कृति ने जितना भी विकास किया हो, इस तरह की घटनाओं को देखकर सब निरर्थक लगता है। ऐसा समाज किस काम का, ऐसी व्यवस्था का क्या करें। मनुष्य ने अपनी सुख-सुविधा के लिए सब कुछ किया मगर वो सब हो रहा है जो जानवरों में भी नहीं देखा जाता। स्वात घाटी में रहने वाला मूल निवासी जुझारू तो है मगर आज कुछ कर नहीं सकता। मजबूर है। राजनैतिक स्थितियां बड़ी जटिल व पेचीदी हैं। कुछ भी स्पष्ट कहना संभव नहीं। क्या सच है क्या झूठ, किसी को नहीं पता। कौन किसके साथ है, किसी को मालूम नहीं। मगर इतना सच है कि आम आदमी बोल नहीं सकता। प्रश्न उठता है कि क्या हम वास्तव में आधुनिक विश्व के अपने बनाए तथाकथित इक्कीसवीं शताब्दी में जी रहे हैं? जी हां, शताब्दी तो इक्कीसवीं ही है मगर परिस्थितियां मध्ययुगीन या आदिकाल से अधिक भिन्न नहीं।
पिछले कुछ दिनों से जो कुछ भी स्वात घाटी के बारे में सुनने में आ रहा है, थोड़ा बहुत देखा भी जा रहा है, दिल को अत्यधिक ठेस पहुंचती है, दुख होता है। मगर इस लड़की पर किये गए अत्याचार ने तो दिल दहला दिया। दिखाए गए दृश्य और आवाज को सुनकर कई घंटों तक दिल और दिमाग ने कार्य करना बंद कर दिया। यकीन ही नहीं हो पा रहा था कि ऐसा भी कुछ हो सकता है। वो भी आज के युग में। दिखाया गया कि एक लड़की को कोड़े से मारा जा रहा है। एक पुरुष द्वारा। कसूर इतना बताया गया है कि वह किसी पराये पुरुष के साथ घर से बाहर निकली थी, या शायद बड़ी उम्र के ससुर के साथ रहती थी। देखने वाली बात यह है कि मारते समय में दो आदमियों ने ही उसे पकड़ रखा था। यकीनन यह भी पराये पुरुष की परिभाषा में आएंगे। इस दृश्य को पूरी दुनिया के अधिकांश टेलीविजन चैनल द्वारा कई बार कई दिनों तक दिखाया जाता रहा। यह मीडिया की जागरूकता का प्रमाण है। समाज के प्रति सकारात्मक पहल है। एक मजबूत प्रस्तुतीकरण। मीडिया ने अपनी जिम्मेदारी का बखूबी निर्वाहन किया। सोचें अगर मीडिया नहीं होता तो वहां क्या होता। बर्बरता अमानवीयता की सभी हदें पार कर रुकता नहीं। मीडिया के कारण ही इस पर विश्व में तीव्र प्रतिक्रिया हुई। हिन्दुस्तान में भी हर वर्ग, धर्म, क्षेत्र व आम जनता से लेकर प्रबुद्ध वर्ग ने अपनी नाराजगी दर्ज की। यही सब कारण है जो उक्त क्षेत्र में प्रभावशाली संगठन से संबंधित लोग अपनी बात बार-बार बदलते चले गए। यकीनन इस दृश्य ने कई लोगों को सोचने पर मजबूर किया होगा, उद्वेलित किया होगा। कुछेक को गुस्सा भी आया होगा। सैकड़ों लेख लिखे जायेंगे। हो सकता है पाकिस्तान की राजनीति पर दबाव भी पड़े और कुछ थोड़ा-बहुत कम-ज्यादा होकर बात खत्म कर दी जाए। मगर सवाल उठता है क्या बस इतना ही काफी होगा? विश्व में हालात दूसरी जगह भी बहुत अच्छे नहीं हैं। शांत, सुरक्षित व सामाजिक रूप से विकसित स्थान को आज विश्व के मानचित्र पर ढूंढ़ना पड़ता है। इतिहास भी युद्ध और अमानवीयता के घटनाक्रमों से भरा पड़ा है। सवाल उठता है कि ये सब किस बात को प्रदर्शित करता है। यकीनन, स्वात घाटी में जो कुछ हुआ, यह एक दिन का काम नहीं हो सकता। यह कई दिनों से धीरे-धीरे चल रहा होगा। जो अंत में इस स्थिति तक पहुंच गया। आगे क्या होगा कोई नहीं जानता। और अगर इस हालात से निकलना है तो सबसे पहले सोचना होगा कि ऐसा हुआ कैसे?
आदिकाल में जब मनुष्य पूर्णतः अविकसित रहा होगा और धर्मों की उत्पत्ति भी नहीं हुई होगी, कह सकते हैं कि वो जानवर के समान ही जीवन व्यतीत कर रहा होगा, तब भी शायद इतना अत्याचार आदमी ने औरत पर कभी नहीं किया होगा। इसका प्रमाण आज भी हम अन्य प्राणियों में देख सकते हैं। संसार की किसी भी जीवित प्रजाति में मादा पर नर के द्वारा, इस तरह से शारीरिक रूप से अत्याचार करने का न तो हक है, न ही प्रकृति में प्रचलन, न ही प्रकृति की व्यवस्था। तब फिर कौन कहता है कि मनुष्य अन्य से बेहतर व सर्वश्रेष्ठ है? अमानवीयता का जो काम मनुष्य करता है वो तो कोई भी नहीं करता। कोई नहीं यह मान सकता कि किसी भी धर्म में, किसी भी परिस्थिति में इस तरह की सजा देने का कोई भी नियम हो सकता है। इस्लाम तो विश्व के श्रेष्ठ धर्मों में से एक है। समानता का पाठ, इस्लाम की प्रमुख शिक्षा व संदेश में से एक है। सभी धर्मों में नारी के सम्मान व बराबरी के हक की बात की जाती है। मगर जो हालात वहां पैदा कर दिये गए वो यकीनन औरतों के लिए नरक से कम नहीं। चाहे जो कहें, आबादी में बराबर की संख्या वाले (पचास प्रतिशत) इस औरत वर्ग पर आदमियों के द्वारा अत्याचार व गुलामी कराने में सफल होने के पीछे एक प्रमुख कारण जो दिखाई देता है वो यह है कि औरतों ने इसे धीरे-धीरे ही सही मगर स्वीकार किया। चाहे फिर वो संस्कृति के नाम पर हो, भावनात्मक रूप से, डर कर या जिस भी रूप में इसे देखा जाए। अंततः दुनिया की तमाम औरतों को इस घृणित कार्य के विरोध में खुलकर खड़ा होना होगा। विशेष रूप से धर्म को सही रूप में मानने वालों को इसकी भर्त्सना करनी होगी। चर्चित लोकप्रिय लोगों को आगे आना होगा। अन्यथा एक बार इसी तरह की घटनाओं ने अपना पैर जमा लिया तो मनुष्य के अंदर विद्यमान पाश्विक प्रवृत्ति बहुत तेजी से फैलेगी और फिर इसे रोक पाना संभव नहीं होगा। इसके पहले कि जंगल में आग चारों ओर फैल जाये, हम सब को कुछ न कुछ अवश्य करना होगा।