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मौत का महोत्सव
अब तब की अपनी छोटी-सी जिंदगी में मैंने कई उत्सव देखे। धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, कला, साहित्यिक। ग्रामीण-शहरी। राष्ट्रीय और पारिवारिक। एक से एक बारात में शामिल हुआ तो कई दावतें उड़ाईं। बड़े-बड़े राजनीतिक जलसे देखे। ग्लैमर की दुनिया की चकाचौंध को भी कुछ-कुछ देखा। रात-रात भर नाचते-गाते खाते-पीते जिंदगी का लुत्फ उठाती कॉकटेल पार्टियां देखी। करोड़पतियों के लाड़लों से लेकर नौकरशाहों के बाबा-बेबी की बर्थ डे पार्टी की रौनक देखी। मध्यम वर्गीय परिवार में पल रही छोटी-सी आशा के बीच उत्साह को देखा। देश-विदेश के कई खूबसूरत और महकते हुए कार्यक्रमों में शिरकत की। हिन्दुस्तान तो वैसे भी सांस्कृतिक विविधता का देश है। हर दिन कोई न कोई त्योहार। उस पर से आजकल तो आधुनिकता का रंग चढ़ा हुआ है। एक जनवरी से ही उत्सव की श्रृंखला शुरू हो जाती है। नये साल का जश्न, फिर होली, दीवाली, ईद, क्रिसमस ये तो कुछ मुख्य त्योहार हैं। दसियों दूसरे पर्व भी हैं। स्थानीय और क्षेत्रीय त्योहारों की तो गिनती नहीं। विशिष्ट त्योहारों पर तो सारा घर-मोहल्ला, शहर ही नहीं, संपूर्ण देश खुशियों व मस्ती में डूब जाता है। कुछ शहरों के खास त्योहार देखे। ये उनकी पहचान हैं। कोलकाता का दुर्गा पूजा, मुंबई का गणेश उत्सव। इसी तरह के और भी त्योहार हैं। यही नहीं, घर-परिवार में नवजात शिशु के जन्म की खुशी के बड़े-बड़े आयोजन देखे। इस संदर्भ में, कई बार मशहूर हस्तियों के बारे में पत्र-पत्रिकाओं में पढ़ा तो कभी टेलीविजन पर देखा और सुना भी। ठीक इसी तरह दुनिया के रईस लोगों के बच्चों की शादियां कभी टापू में तो कभी हवाई जहाज में होते सुनी। हॉलीवुड से लेकर बॉलीवुड के सितारों की पहली, दूसरी, तीसरी और चौथी शादियों तक की मीडिया में खूब चर्चा होती है। कभी ऐतिहासिक किलों में तो कभी किसी आलीशान फाइव स्टार होटलों में आयोजन होता है। बैंडबाजे के साथ आतिशबाजी भी खूब की जाती है। कुछ एक ने तो अपने निमंत्रण पत्रों तक में हजारों-लाखों फूंक दिये तो कइयों ने आदिकाल के किसी ऑलीशान महल को शहर के बंगले में ला खड़ा कर दिया। इन सभी में एक तथ्य सामान्य रूप में उपस्थित है, घर हो या होटल, गरीब हो या धनवान, अपनी-अपनी हैसियत से, खाने-पीने में दुनिया जहान की चीजें बनाना तो एक आम बात है। मगर इन सबके बीच में वो अब तक नहीं देखा जो विगत सप्ताह पढ़ने व सुनने में आया। मौत का महोत्सव। जेड गुडी ने अपनी मौत को जिस तरह से उत्सव में परिवर्तित कर दिया, मैं सोच सोचकर हैरान हूं।
जेड गुडी भारत में एक चर्चित नाम है। वो अंग्रेजों के बीच टीवी रियेलिटी शो ‘बिग ब्रदर’ से चर्चा में आई थीं। और रातोंरात इस तरह के टेलीविजन कार्यक्रमों की सितारा बन गईं। उनके द्वारा ‘सेलिब्रिटी बिग ब्रदर शो’ में कहे गए नसलभेदी कथन ने जहां शिल्पा शेट्टी को इस कार्यक्रम का विजेता बनवा कर यूरोप में चर्चित करवा दिया था, वहीं इंगलैंड के रियेलिटी शो की आकर्षक स्टार, सत्ताईस वर्षीय जेड गुडी का नाम हिन्दुस्तान के घर-घर में जाना जाने लगा। यकीनन, जेड गुडी सकारात्मक रूप से लिया जाने वाला नाम नहीं था। एक विवादित शख्स के रूप में उनकी पहचान बनी थी। वह मीडिया द्वारा प्रचारित-प्रसारित बाजार की उत्पत्ति थीं और उनके नाम का बाजार ने भरपूर इस्तेमाल किया। यह कहना गलत नहीं होगा कि बदले में बड़ी चतुराई से उन्होंने भी मीडिया व बाजार का उपयोग व उपभोग किया। इसी का फल था कि बिग ब्रदर के हिन्दी रूपांतरण बिग बॉस में भी वो एक चर्चित प्रतियोगी के रूप में शामिल हुईं। एक सशक्त दावेदार के रूप में। मगर किस्मत का खेल देखें। इसी बीच उन्हें एक ऐसी बीमारी, सर्वाइकल कैंसर का पता चला, जिसके सामने सब कुछ, समय भी, हार जाता है। और जीवन झुक जाता है। विज्ञान भी अब तक तो इसके सामने मजबूर ही है। ग्लैमर, पैसा, लोकप्रियता और दुनिया की तमाम मानवीय शक्ति उसके सामने बौनी है। इस बीमारी का नाम आते ही लोग अधमरे हो जाते हैं और डर व चिंता में समय से पहले ही मर जाते हैं। इस बीमारी से ग्रसित लोगों को दुःख में चिड़चिड़ाते, दर्द में चीखते-चिल्लाते, पल-पल मरते हुए देखा व सुना है। यह बहुत ही पीड़ादायक होता है। यह समय बीमार व्यक्ति के साथ-साथ परिवार व अन्य नजदीकी लोगों के लिए भी मुश्किलों से भरा होता है। मगर जेड गुडी ने इस कालचक्र को जिस नये अंदाज में, अपने ढंग से गुजारा, वो अकल्पनीय था। उन्होंने शारीरिक दुःख-दर्द को तो सहा ही साथ ही मानसिक पीड़ा को भी भोगा, लेकिन कैंसर की भयावहता को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। मानो उसके प्रभाव को रोक दिया हो। उन्होंने इस बीमारी को एक चैलेंज के रूप में स्वीकार किया। इस घटनाक्रम को जीवन के एक मोड़ की तरह लिया, बस। अंत तक खुश रहने की सफल कोशिश की। उन्हें मरने से पहले मरना स्वीकार नहीं था। अंतिम दिनों तक भरपूर जिंदगी जी। वही मस्ती, वही चंचलता, वही आधुनिकता, वही खुलकर जीवन जीने का जज्बा। उनका व्यक्तित्व एक जिंदादिल बहादुर इंसान के रूप में उभरा। उन्होंने सारी सीमाएं तो तब तोड़ दीं जब इस हालात में भी बकायदा शादी की। इसे पत्र-पत्रिकाओं में स्थान तो मिलना ही था। खूब चर्चा हुई। इस घटना ने लोकप्रियता की सभी हदों को पार किया। अंत में, जीवन के हर पल को बाजार में पहुंचा देने वाली इस शख्स ने मौत का भी सौदा कर दिया। यह सुनने में अटपटा जरूर लग सकता है मगर इसके लिए भी कलेजा चाहिए। हिम्मत चाहिए। आत्मबल चाहिए। आत्मविश्वास चाहिए। आंतरिक शक्ति चाहिए। जीवनभर वह परंपरा से हटकर रहीं और जीवन को अपने ढंग से जीया, और उसी अंदाज में अपनी मौत को भी एक विशेष घटना बना डाला। समाज की पुरानी प्रथा को मानो विराम लगा दिया। इतिहास में, ऐसा कहीं भी, कभी भी, दिखाई नहीं देता। उन्होंने अपनी मौत को भी ठीक उसी तरह प्रसारित करने का अनुबंध किया, जिस तरह से उनके जीवन के हर महत्वपूर्ण घटना को अब तक किया जाता रहा था। शादी, शादी की वर्षगांठ, बच्चे का जन्म, और कुछ बेहद व्यक्तिगत क्षण, अंतरंग पल और साथ ही सौंदर्य व शारीरिक सुंदरता। इसी क्रम में मौत को भी बाजार में बिकने के लिए, बाजार को परोस दिया, एक महत्वपूर्ण घटना बनाकर। इस पर बहस हो सकती है। तर्क-वितर्क किया जा सकता है। मगर विरोध करने वालों से सैद्धांतिक रूप में सवाल किया जाना चाहिए कि जब जीवन का हर एक दिन महत्वपूर्ण है तो मौत क्यों नहीं? यह भी तो एक सत्य है, जिसे जेड गुडी ने हंसते हुए स्वीकार किया।
जेड गुडी प्रारंभ में बाजार का एक खिलौना दिखाई देती थीं। उन्हें पसंद करने वाले शायद उतने न हों जितने नापसंद करने वाले थे। इसमें कोई शक नहीं कि वो आधुनिक जीवन के इस सत्य का प्रमाण थीं कि आज के युग में सनसनी बिकती है, अलग हट कर जीने वाले ही स्टार कहलाते हैं। वो मीडिया में बिकने वाली व्यक्ति बनीं। उनसे संबंधित हर घटना मीडिया के लिए महत्वपूर्ण बन जाती। उन्हें इस बात का कोई मलाल भी नहीं था। वो सदैव इसके लिए तैयार रहतीं। या यूं कहें कि खुद घटनाएं पैदा करती थीं तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। बाजार के सारे जोड़-तोड़ उन्हें आते थे। लेकिन उसी प्रवाह में, उसी तरह से, अपनी मौत को भी बेचकर उन्होंने यह सिद्ध कर दिया कि वो मौत को भी उसी तरह से लेती हैं, जिस तरह से जीवन के अन्य पल। कइयों की निगाह में यह क्रूर मजाक हो सकता है, जीवन को एक तमाशा बनाने के समान। यह भी सच है कि मीडिया को सिर्फ अपनी तिजोरी भरने से मतलब है। लेकिन जेड गुडी के लिए इस बार यह सिर्फ पैसा नहीं था। इसके पीछे गहरी संवेदना थी। एक मां होने का फर्ज था। अपने दो बच्चे, बॉबी व फ्रेडी, के लिए आर्थिक सहयोग के रूप में उन्होंने अपने शादी के चित्र पांच करोड़ में और मरने का लाइव टेलिकास्ट 70 लाख में ब्रिटेन की लिविंग चैनल को बेच दिया। यह इस बात को प्रदर्शित करता है कि उन्होंने कभी दोहरा जीवन नहीं जिया। उन्होंने जो कहा उसे स्वीकार किया और जिसे स्वीकार किया उसे खुलकर किया। तभी शायद उनकी अंतिम सांसें मदर्स डे पर ही रुकीं, और वो 22 मार्च को चिरनिद्रा में सो गईं। ऐसा नहीं कि उन्हें मरने का गम नहीं था। वो जीना चाहती थीं। शारीरिक कष्ट व दर्द से बेहाल होकर मरने के लिए इच्छा भी जताई थी। गोली या इंजेक्शन के माध्यम से, कैंसर की पीड़ा से मुक्ति के लिए निवेदन भी किया था। इन सबके बीच भी अपना साहस नहीं छोड़ा। पहचान नहीं गंवाई। वो एक जिंदादिल इंसान थी और अंत तक उसी तरह रहीं। उन्होंने तमाम उम्र जीवन का जश्न मनाया और अंत में मौत का उत्सव। बस, उनकी इसी बात ने उन्हें सदैव के लिए अमर कर दिया। एक ऐसा व्यक्तित्व जो खुलकर जीते हुए खुलकर मरा। विरोध में कुछ भी कहना बहुत आसान है, मगर क्या ऐसा हम कर पायेंगे?