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अंतरिक्ष में ट्रैफिक जाम

यह एक बड़ी दुर्घटना थी। अंतरिक्ष में मानव निर्मित दो सेटेलाइट आपस में टकराये थे। इसे, सड़कों पर, मोटर गाड़ियों में होने वाली आम भिड़ंत के रूप में नहीं लिया जाये। न ही हवाई जहाज व ट्रेनों की दुर्घटनाओं की भीषणता से जोड़कर देखा जाए। सीधे शब्दों में इसे साधारण रूप में नहीं लिया जाना चाहिए। आज, यह अपने आप में, अपने तरह की, प्रथम घटना ही सही, मगर भविष्य की ओर कुछ विशेष संकेत करती है। आने वाले कल की तसवीर खींचती है। अंतरिक्ष में हुई इस टक्कर में दोनों यान पूर्णतः क्षतिग्रस्त होकर मलबा बन गए। रोड पर इस तरह की दुर्घटना होने पर ट्रैफिक जाम हो जाता है और दुर्घटनाग्रस्त गाड़ियों को जल्द से जल्द सड़क से हटाना पड़ता है। लेकिन अंतरिक्ष में यह मलबा हमारे लिए एक नयी मुसीबत के रूप में तैरता रहा। और खूब चर्चा में रहा। यह खबर दुनिया के छोटे-बड़े सभी समाचारपत्रों में प्रथम पृष्ठ पर छपी। टीवी ने भी इसका नोटिस लिया। लेकिन फिर अचानक गायब। सभी मौन। जबकि इस पर एक लंबी बहस होनी चाहिए। वाद-विवाद होना चाहिए। इस मुद्दे पर आम लोगों की राय ली जानी चाहिए। सामान्यजन को विस्तार में पता होना चाहिए कि इस मलबे का क्या हुआ। सिर्फ यह कहकर पीछा नहीं छुड़ाया जा सकता कि ज्यादा बताने से भगदड़ मच सकती है। यह कहना उचित न होगा कि लोग बेवजह बेचैन हो सकते हैं जबकि इसमें ऐसा कुछ विशेष नहीं था। असल में दुर्घटना के अप्रत्याशित प्रभाव और भविष्य में खतरे की संभावना पर विचार जरूरी है। यहां, अंतरिक्ष में खोज की अभिलाषा के साथ-साथ मानव के अस्तित्व और उसकी सुरक्षा का पहलू जुड़ा है। ये कुछ ऐसे मुद्दे हैं जिस पर खुलकर तर्क-वितर्क होना चाहिए। पक्ष-विपक्ष की बातें सुनी जानी चाहिए। आज तो मुसीबत टल गई। कोई नुकसान नहीं हुआ, ऐसा बताया गया है। लेकिन असल में क्या सत्य है जनसामान्य नहीं जानता। अन्य कई महत्वपूर्ण घटनाओं की तरह इसे भी पन्नों के भीतर दबा दिया गया। मीडिया को बाजार से फुर्सत नहीं और मनुष्य उपभोक्ता बनकर हर पल मस्ती में डूबा रहना चाहता है। वो अपने भविष्य से निष्फिक्र है। जबकि आने वाले समय में ऐसा कुछ नहीं होगा, कोई दावे से नहीं कह सकता। और फिर वो कितना भयावह हो सकता है, कोई नहीं जानता।

साइबेरिया के ऊपर चार सौ पचासी मील दूर अंतरिक्ष में दो मानव निर्मित सेटेलाइट दस फरवरी, 2009, 1700 जीएमटी टाइम पर आपस में टकरा गये। अंतरिक्ष में इस तरह की यह पहली दुर्घटना थी। जिसमें दो यानों की आपस में भिड़ंत हुई। दुर्घटनाएं तो पहले भी अंतरिक्ष में प्रयोगों के दौरान होती रही हैं। जिसमें लाखों करोड़ों के नुकसान के साथ-साथ जानमाल की क्षति भी हुई है। एक-एक कदम मनुष्य ने बड़ी मुश्किल से आगे बढ़ाये हैं। रहस्यमयी अंतरिक्ष को जानने की उत्सुकता, नये-नये आविष्कार-खोज, कुछ नया करने की पहल और उसमें होने वाली त्रुटियों का निराकरण, खुले व अनंत ब्रह्मांड में मानव का अभियान, जो हर बार पहले से बेहतर होता। और इस तरह अंतरिक्ष विज्ञान को निरंतर सफलता मिलती गयी। मनुष्य ने इसकी भरपूर कीमत भी चुकाई है। सैकड़ों लोंगों की जान गयी है। मगर उपरोक्त दुर्घटना इन खतरों से भिन्न है। यह इस बात का संकेत करती है कि अंतरिक्ष में मानव निर्मित सेटेलाइट स्टेशन व यानों की संख्या बढ़ती जा रही है। और इनमें बेहतर तालमेल व नियम की व्यवस्था समय रहते न बनाई गई तो भविष्य में किसी बड़ी मुसीबत का कारण बन सकती है। असल में, पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगाने वाले इन अंतरिक्ष यानों के लिए, कुछ सुनिश्चित दूरी के कक्ष (आरबिट) अतिमहत्वपूर्ण हैं। विज्ञान एवं व्यवसाय, दोनों दृष्टि से। स्वाभाविक रूप में इनमें जगह सीमित है। यह ऐसा कक्ष है जिसे स्थायी कहा जा सकता है। जहां पहुंच जाने पर, इन अंतरिक्ष यान के एक सुनिश्चित गति पर दौड़ने पर, वे पृथ्वी के साथ-साथ घूमते प्रतीत होते हैं। और यही कारण है कि जो इस कक्ष का दूरसंचार, अंतरिक्ष विज्ञान व अन्य वैज्ञानिक प्रयोगों के लिए उपयोग किया जाता है। यहीं पर सामरिक एवं सैन्य दृष्टि से राष्ट्रों द्वारा अपने-अपने यान तैनात किये जाते हैं। जिस तरह से पृथ्वी पर रोड को हम चौड़ा तो कर सकते हैं लेकिन जमीन की भी अपनी अंतिम सीमा है, उसी तरह से ऊपर आकाश में भी हर एक कक्ष में सीमित स्थान उपलब्ध है।

1235 पौंड के अमेरिकन व्यावसायिक सेटेलाइट जिसे 1997 में अंतरिक्ष में भेजा गया था, वह तकरीबन एक टन के 2251 कॉसमस सैनिक सेटेलाइट, जिसे रशिया ने 1993 में अंतरिक्ष में भेजा था, से जा टकराया। कहा तो जा रहा है कि रशियन सेटेलाइट उपयोग में नहीं था। अर्थात चालू हालात में नहीं था। यह यहां पर एक महत्वपूर्ण बिंदु है। जिस पर विचार किया जाना जरूरी है। सर्वविदित है कि हर एक का जीवनकाल सुनिश्चित है। परंतु उसके बाद? प्राणी, पेड़, पौधों की व्यवस्था तो प्रकृति ने कर रखी है। सभी नष्ट होकर प्रकृति में ही विलीन हो जाते हैं मगर मानव निर्मित वस्तु का क्या? उदाहरण के तौर पर एक अकेले प्लास्टिक ही हमारे लिये चिंता का कारण बनता जा रहा है। अमूमन हम अपने द्वारा बनाई गई वस्तुओं के अनुपयोगी होने पर उसे फेंककर अपने कर्तव्य से मुक्त हो जाते हैं। और पृथ्वी को एक कचरा घर बनाते जा रहे हैं। यही हाल अंतरिक्ष में है। चिंता की बात यह है कि इन यानों में स्थापित संवेदनशील सामान का क्या होगा? वो किस प्रकार के हैं, यहां महत्वपूर्ण है। संबंधित राष्ट्र सदैव इसे गोपनीय रखेगा। लेकिन टकराने के बाद उत्पन्न होने वाली परिस्थितियां तो घातक हो सकती हैं।

मार्क मार्टिनी अमेरिका के अंतरिक्ष डेबरी (अंतरिक्ष कबाड़) साइंटिस्ट इस बात को बड़ी सरलता और सहजता से कह जाते हैं कि हमें पता था कि यह होने वाला है। सवाल उठता है तो फिर इससे बचने के क्या उपाय किए गए? दोनों ओर के वैज्ञानिकों द्वारा कहा गया कि इंटरनेशनल स्पेस सेंटर को कोई खतरा नहीं है। लेकिन प्रश्न है कि अगर इसी तरह से सेटेलाइट और स्पेस स्टेशन सेंटर अंतरिक्ष में स्थापित किये जाते रहे तो भविष्य में कितनी भयावह स्थिति बनेगी? इस दुर्घटना के बाद अंतरिक्ष में होने वाले सैन्य, सिविल व वैज्ञानिक गतिविधियों के लिए कोड ऑफ कंडक्ट की बात की जाने लगी है। यह सत्य है कि इस पर पूर्व में भी चर्चा होती रही है। हर बार दुर्घटना के समय आवाज जोर से उठाई जाती है जो कुछ दिनों में बिना किसी निर्णय पर पहुंच कर रुक जाती है। और फिर प्रगति व विकास के नाम पर हम पुनः बिना सोच-विचार किए हुए आगे बढ़ जाते हैं।

अंतरिक्ष किसी एक देश के नियंत्रण में नहीं हो सकता। इसे सीमाओं में नहीं बांधा जा सकता। आज के अति आधुनिक कुछ देश अपनी ताकत, पैसे और विज्ञान के बल पर यहां जो चाहें वो कर सकते हैं और कर रहे हैं। मगर दुर्घटना की स्थिति में इसके होने वाले परिणाम, गरीब और प्रगतिशील देशों पर भी बराबरी से पड़ेंगे। जिनका इसमें कोई भागीदारी नहीं, न ही वो इसके जवाबदार हैं। जब वे इससे लाभान्वित नहीं हो रहे तो नुकसान उठाने के लिए क्यूं तैयार रहें? आकाश एक छत है जिसके नीचे संपूर्ण मानव सभ्यता एक साथ रहती है। किसी एक का अतिउत्साह या चंचलता, अन्य के लिए तकलीफदायक भी हो सकती है। यही कारण है जो सभी का इसके बारे में जानना जरूरी है। सभी का मत लिया जाना चाहिए। जब बात पृथ्वी के बाहर की हो जाये तो पृथ्वी पर एकमत होना आवश्यक है। लेकिन मनुष्य कितना भी प्रगति कर जाये, उसकी प्रवृत्ति उसके विकास के रास्ते में सबसे बड़ी रुकावट है। वर्तमान में, विज्ञान, साहित्य, दर्शन, ज्ञान की इतनी उन्नति के बाद भी, क्या हम किसी भी एक बिंदु पर, आसानी से एकमत हो पाते हैं? नहीं। पृथ्वी पर स्थित समुद्र और महासागरों के उपयोग की व्यवस्था और नियंत्रण के लिए बनाये जाने वाले (लॉ ऑफ सी ट्रीटी ‘लॉस्ट’) का आज तक निर्णायक रूप से अंतिमस्वरूप न दिया जाना, इस बात का सबसे बड़ा सबूत है। ऐसी अफरा-तफरी में, किस तरह का अंतरिक्ष हम बना रहे हैं? क्या उस शहर के समान जहां अस्त-व्यस्त ट्रैफिक, जाम व दुर्घटनाएं होती रहती हैं या फिर उस आधुनिक नगरों की तरह जहां सब कुछ नियोजित व व्यवस्थित होता है? हम आने वाली पीढ़ी को उनका अंतरिक्ष किसी रूप में देंगे, यह आज हमें सुनिश्चित करना हैं।