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जरदारी किस्मत वालों के प्रतिनिधि
मैं, सदा से ईश्वर पर आस्था रखने वाला इंसान रहा हूं और भाग्य पर विश्वास करता हूं। वैसे तो कर्म प्रधान व तथाकथित बुद्धिमानी लोगों के लंबे तर्क से बचने के लिए कभी मौन तो कभी कर्म को महत्वपूर्ण घोषित करता रहा हूं। यकीनन कर्म के बिना तो कुछ भी संभव नहीं और भाग्य का फल खाने के लिए भी कर्म अति आवश्यक है। लेकिन व्यक्तिगत रूप से दिल की आवाज सुने तो मेरे मतानुसार भाग्य का पलड़ा कर्म से सदैव भारी रहा है। दार्शनिक रूप से इसे कुछ यूं भी कहा जा सकता है कि भाग्य अपने आप कर्म करवा लेता है। इसे तर्कों में इस तरह से प्रस्तुत किया जा सकता है कि हर सफल आदमी को तो कर्म करते हुए देखा जा सकता है लेकिन हर मेहनतकश को सफल होते हुए नहीं देखा जा सकता। यहां सफल होने वाला व्यक्ति ही भाग्यशाली कहलाता है, और जो मेहनत करते हुए भी असफल रह जाते हैं उनसे अपने आप को अलग करता है। जीवन में इस तरह के उदाहरण हर जगह देखे जा सकते हैं। कुछ एक तो ऐसे भी मिल जाएंगे जो भाग्य के भरोसे ही सदा सफल होते रहे वहीं ऐसे लोगों की भी कमी नहीं जो जिंदगीभर पूरे मन से शरीर और दिमाग को कूटते रहे मगर दो वक्त की रोटी भी अपने और अपने परिवार के लिए ढंग से नहीं जुटा पाये।
किस्मत का धनी कोई किस हद तक हो सकता है इस बात को एक ताजा घटनाक्रम के माध्यम से, ज्यादा आसानी से समझा जा सकता है। बेगम बेनजीर भुट्टो के पति आसिफ अली जरदारी का पाकिस्तान के राष्ट्रपति के पद पर पहुंचना किसी आश्चर्य से कम नहीं। जरदारी वर्तमान युग में भाग्यशाली लोगों के प्रतीक के रूप में उभरे हैं। भाग्य पर विश्वास करने वालों के लिए एक सर्वश्रेष्ठ उदाहरण। मात्र दो दशक में वे कहां से कहां पहुंच गए। उसमें भी भरपूर उतार-चढ़ाव। यह किसी फिल्म या काल्पनिक उपन्यास में भी संभव नहीं। और अगर कोई लिख भी दे तो इस तरह की कहानियों को लोग पढ़कर हंसी में उड़ा देंगे। और तो और लिखे गये को साहित्य नहीं माना जाएगा उलटे लेखक का मखौल उड़ाया जाएगा। लेकिन फिर यह भी सत्य है कि वास्तविकता कल्पना से भी अधिक विस्मयकारी होती है। अविश्वसनीय हो सकती है। अकल्पनीय होती है। और लोग इसे कई बार चमत्कार के रूप में भी घोषित कर देते हैं। ऐसे चमत्कार सदियों से होते रहे हैं और इतिहास के पन्नों में सैकड़ों की तादाद में दर्ज हैं। आज भी हो रहे हैं और भविष्य में भी होते रहेंगे। कई सुंदर, योग्य और अधिक प्रतिभावान व मेहनती युवा रोज मुम्बई पहुंचते हैं लेकिन शाहरुख खान एक ही बन पाता है। आस्ट्रिया का रहने वाला हिटलर एक अति साधारण व्यक्तित्व का धनी था। साथ ही उसके स्वभाव में बेवकूफियां और तानाशाही पहले दिन से ही थीं लेकिन जर्मन के शीर्ष स्थान पर पहुंचकर इतिहास में सदा के लिए दर्ज हो जाना, इसे भाग्य ही करवा सकता है। नेपोलियन का जीवन तो उतार-चढ़ाव से इतना भरा हुआ है कि अगर उसका सर्वोच्च स्थान पर पहुंचना चमत्कार था, भाग्य था तो अचानक अपने ही देश में बंदी बनकर जीवन के अंतिम दिन गुजारना दुर्भाग्य कहलाया जाना चाहिए। भाग्य का ही नकारात्मक पक्ष। क्या सोनिया गांधी ने कभी ऐसा सोचा था कि वो कुछ वर्षों में ही किसी नये देश में जाकर शिखर महिला के रूप में स्थापित हो जाएंगी? राजीव गांधी से पहले प्रेम और फिर विवाह के वक्त तो उन्होंने ऐसा नहीं सोचा होगा। और जो कुछ भी बाद में हुआ, कम से कम ऐसा तो उन्होंने कभी बिलकुल भी न चाहा होगा, न ही कभी सपने में सोचा होगा। कोई भी पत्नी या बहू घर में इस तरह की दुर्घटनाओं की कल्पना भी नहीं कर सकती। मगर भाग्य को कुछ और ही मंजूर था। देश के बाहर कई व्यापारी किस्मत आजमाने जाते हैं, लेकिन सभी लक्ष्मी मित्तल नहीं बन जाते। कार्यकुशलता, व्यापार की सूझबूझ, प्रबंधन की क्षमता, दर्शन और दूरदर्शिता कइयों के पास होती है लेकिन हर एक के हाथ डालने से मिट्टी सोना नहीं बनती। जीवन अनिश्चितताओं से भरा पड़ा हुआ है। ‘समय’ के अस्तित्व पर वैज्ञानिक और दर्शनशास्त्री चाहे जितने मर्जी विचार व्यक्त कर लें, पंडित बेशक भविष्यवाणियां करते रहें, लेकिन अगले पल का कोई भरोसा नहीं। एक मिनट में जीवन इधर से उधर हो जाता है। भाग्य के इस वर्चस्व को गाहे-बगाहे अधिकांश सफल आदमियों के मुंह से सुना जा सकता है। कहते भी हैं कि अगर किसी को सफलता मिलनी हो तो रास्ते खुद-ब-खुद जुड़ जाते हैं। यही एक ऐसा बिंदु है जिस पर आकर ईश्वर की महिमा का गुणगान होता है। यही कारण है जो प्रतिस्पर्द्धा के युग में विज्ञान और ज्ञान के प्रचार-प्रसार के बावजूद ईश्वर के देवालयों में भीड़ बढ़ती जा रही है। हर आदमी आज सफल जो होना चाहता है। और जो सफल हो चुका है वो असफलता से बचना चाहता है।
उपरोक्त बातों पर ध्यान दें तो जरदारी ने सर्वप्रथम ईश्वर का शुक्रिया अदा किया होगा जिसने उन्हें अपने ही देश के सर्वोच्च पद पर बिठाया। जिस देश में कुछ ही वर्ष पूर्व जो शख्स कानून-व्यवस्था, राजनीति, आम जनता, सेना, न्यायिक व्यवस्था सभी से बचने की कोशिश में हो, बदनामी का कलंक जिसके चेहरे पर पूरी तरह से पुता हुआ हो, जो शासन की कुटिलताओं को झेल रहा हो, कई वर्षों तक काल कोठरी में बंद हो, जो जीवन के द्वारा बात-बात पर सताया गया हो, ऐसे शख्स को उठाकर मात्र कुछ महीनों में ही शिखर पर बैठाने वाला कोई और नहीं ईश्वर ही हो सकता है। यह किसी इंसान की कोशिश, प्रयास, कर्म, चालाकी, त्याग, षड्यंत्र, योजना, मेहनत का कमाल नहीं हो सकता। आज वो जो भी हैं इसकी कल्पना उन्होंने स्वयं कभी अपने स्वप्न में भी नहीं की होगी। और देर रात गहरी नींद के सपनों में कोई ख्वाब अगर देखें भी होंगे तो सुबह उठकर उस पर व्यंग्यात्मक रूप में हंसे होंगे। असंभव से संभव, अचानक निचली पायदान से उठकर शीर्ष तक पहुंचना, आज जरदारी इस बात के प्रतीक हैं। वो इस बात के सबूत हैं कि जब ऊपर वाला देता है तो छप्पर फाड़कर देता है।
मगर बात यहीं नहीं खत्म हो जाती। किस्मत अगर तूफान की गति से शिखर पर ले जा सकती है तो बिजली की रफ्तार से जमीन पर पटक भी सकती है। मिनटों में ही सब कुछ मिट्टी में तबदील हो सकता है। इतिहास इस तरह की घटनाओं से भरा पड़ा है। उपरोक्त बातों को पढ़कर यहां पर यह तर्क दिया जा सकता है कि जब भाग्योदय में आपका कोई हाथ नहीं तो पतन से क्यों घबराना। और फिर अगर पतन होना ही है और अगर वो सुनिश्चित ही है तो फिर ज्यादा क्या सोचना। यहां पर हिटलर और नेपोलियन, दोनों ही भाग्य और दुर्भाग्य का फल चखने वाले महत्वपूर्ण उदाहरण हैं, के तुलनात्मक अध्ययन से जीवन के लिए एक संदेश लिया जा सकता है। इनके व्यक्तित्व के बीच के मूलभूत अंतर पर विचार किया जा सकता है, इसे विश्लेषित किया जा सकता है। दोनों ही भाग्यशाली थे, दोनों ही महत्वकांक्षी थे, दोनों का पतन भी दुर्भाग्य से हुआ। लेकिन दोनों के मध्य एक अंतर था कि जहां एक को आज भी शक की दृष्टि से देखा जाता है वहीं दूसरे के प्रति इज्जत, आकर्षण पूरी तरह बरकरार है। नेपोलियन के देशप्रेम, कला-संस्कृति, साहस, कलादर्शन की चर्चा आज भी होती है। वहीं हिटलर अपने आप में एक अनर्थ की परिभाषा बन चुका है। समाज के अमानवीय तानाशाह के लिए हिटलरशाही परिभाषित कर दी गई है। एक ऐसा शब्द जिससे लोग बचना चाहते हैं। तो फिर सवाल उठता है कि आप क्या बनना चाहेंगे? भाग्य के दिये को कैसे उपयोग करना चाहेंगे? देव बनकर या दानव बनकर?
आज पाकिस्तान एक कठिन दौर से गुजर रहा है। उसे एक कुशल व सशक्त नेतृत्व की आवश्यकता है। एक स्पष्ट मंजिल की ओर निरंतर आगे बढ़ने की चाहत रखने वाले की आवश्यकता है। एक ऐसा नेतृत्व जो उसे उंगली पकड़कर कठिन मुसीबतों में से निकालकर, अस्त-व्यस्त ट्रैफिक वाले सड़क के पार ले जाये। अराजकता, अस्तव्यस्तता, असंतोष अपने चरम पर है। दोस्त (अमेरिका) भी दुश्मन का रूप लेने के लिए आतुर हो, घर और बाहर आग ही आग, ऐसे में राष्ट्रपति का पद किसी नुकीली कांटों के ताज से कम नहीं। यकीनन ऐसे वक्त कुछ करने के लिए उन्हें सरलता, संपूर्ण समर्पण, सतर्क समन्वय और अतिरिक्त साहस की आवश्यकता पड़ेगी। अब तक जो भी कुछ उन्होंने किया वह स्वयं के लिए अधिक होगा मगर अब पाकिस्तान का अवाम उनकी ओर टकटकी लगाए देख रहा है। अब तक उन पर लगे सारे इल्जाम राजनीति से प्रेरित हो सकते हैं मगर अब देश की राजनीति उनकी ओर आस लगाए बैठी है। मि. टेन परसेंट के नाम से बदनाम जरदारी के लिए अगर यह आरोप सत्य भी हैं तो उन्हें यह समझना होगा कि अब तो पूरा पाकिस्तान ही उनके पास है तो क्यूं न इसे अपने एक परिवार की तरह विकसित किया जाए, और अगर इल्जाम गलत हैं तो यह उन्हें अपने अच्छे कार्यों से प्रदर्शित व प्रमाणित भी करना होगा। अब यह उनके हाथ में है कि वो क्या करना चाहते हैं। पाकिस्तान के अन्य पुराने राष्ट्रपतियों की भांति मात्र इतिहास में दर्ज होना चाहते हैं या फिर एक ऐसा सितारा जो आसमान में उभरा हो और जो पूरे देश में रौशनी फैला रहा हो। अंधेरे से जूझ रहे पाकिस्तान को अब एक नये सवेरे की चाहत है।