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मेरा आसमान सुंदर है
इन दस दिनों में अचानक घर से बाहर घूमने जाने का मौका मिला। पहले दिल्ली फिर जबलपुर और फिर हैदराबाद। कभी ट्रेन में तो कहीं हवाई जहाज में। हिन्दुस्तान में अगर यात्राएं पहले से ही सुनियोजित एवं सीटें आरक्षित हों तो यात्रा सुखद एवं आरामदायक होती है अन्यथा होने वाली तकलीफों को बयां नहीं किया जा सकता। ट्रेन में सीट आरक्षित होने के बावजूद भी अगर मंजिल के लिए सीधी ट्रेन या हवाई जहाज की व्यवस्था न हो और किसी बीच के शहर में ट्रेन या हवाई जहाज बदलना हो तो यह बोरियत से भरा हुआ बड़ा कष्टदायक समय होता है। हवाई जहाज के सफर में तो यह कुछ हद तक ठीक भी होता है परंतु रेलवे स्टेशनों पर समय बिताना एक मुश्किल कार्य है। स्टेशन के प्लेटफार्मों पर नीचे जमीन पर लेटे हुए सैकड़ों यात्रियों को देखकर हर एक के अपने-अपने विचार हो सकते हैं। मगर असल में वही समझ सकता है जिसने प्लेटफार्म पर खुद समय गुजारा हो। इन सबके बावजूद ट्रेन की यात्रा हवाई जहाज की यात्रा से कई मामलों में बेहतर है। फर्स्ट क्लास का डिब्बा हो, वातानुकूलित शयनयान या फिर थर्ड क्लास, सभी में यात्रीगण खाते-पीते, आपस में बातचीत करते नये-नये संबंध जोड़ते यात्रा का आनंद लेते हैं। जहरीला खाना खिलाकर बेहोश कर लूटने वाले लोगों के बारे में चेतावनी दिए जाने के बावजूद इस तरह का वातावरण आज भी ट्रेनों में देखा जा सकता है। लेकिन इस तरह की कोई भी संभावना वायुयान में नहीं देखी जाती। पहले पहल तो लगा कि शायद हवाई यात्रा करने वाले लोग उच्च वर्ग के होते हैं जिनमें अतिरिक्त अहम् कूट-कूट कर भरा होता है शायद इसीलिए ऐसा नजारा वायुयान में देखने को नहीं मिलता है। परंतु फिर आज के युग में सस्ती हवाई यात्रा के बावजूद जब इस तरह का माहौल देखने को नहीं मिला तो मैं सोचने के लिए मजबूर हुआ था कि क्या कारण है कि वायुयान में लोग एक-दूसरे से कम बात करते हैं? अचानक ध्यान आया कि इसी तरह का कुछ-कुछ बसों में भी होता है। यहां सीटों की व्यवस्था कुछ इस तरह की होती है कि यात्री एक-दूसरे के आमने-सामने नहीं बैठ पाते। सिर्फ बगल वाले से ही बात की जा सकती है। यह भी सुविधाजनक नहीं होता और यात्रियों को आपस में बात करने में आनंद नहीं आता। सीटें भी मात्र इतनी चौड़ी होती हैं कि उसके अंदर सिर्फ धंसा या फंसा जा सकता है। जबकि ट्रेन में आप चारों तरफ घूम-घूम कर, आमने-सामने, बगल में बैठे यात्री के साथ लेटकर-बैठकर-आलती-पालती मार कर बातें कर सकते हैं। यही कारण है जो ट्रेन का सफर अधिक आरामदायक और मस्ती से भरा होता है। हवाई यात्रा में समय की बचत को छोड़ दें तो ट्रेन के फायदे अधिक हैं। बरसात के मौसम में बाहर का नजारा अति सुंदर होता है वो अलग।
दिल्ली, जबलपुर, हैदराबाद इन तीनों शहरों की अपनी विशिष्टता है। दिल्ली अपनी वास्तुकला व ऐतिहासिक इमारतों के माध्यम से लोगों को आज भी आकर्षित करती है। वहीं जबलपुर जैसा प्राचीन शहर बढ़ते हुए विशाल आकार के होते हुए भी पुरानी परंपराओं और संस्कृति को अपने अंदर समेटे हुए है। यहां नैसर्गिंक सुंदरता आज भी देखने को मिल जाती है। हरियाली भरपूर है। वैसे तो अन्य बड़े शहरों की तुलना में दिल्ली में भी हरियाली अधिक है लेकिन अत्यधिक गाड़ियां, चौड़ी सड़कें, अनगिनत फ्लाई ओवर से शहर की सुंदरता में आधुनिकीकरण का पुट आ जाता है। वहीं जबलपुर अपने पारंपरिक सौंदर्य में कुछ एक बन रही आधुनिक इमारतों के माध्यम से नयी पहचान बनाने की कोशिश में है। हैदराबाद उतरते ही वहां का एयरपोर्ट देखकर आंखें चौंधिया गई थीं। यह मेरे द्वारा देखा गया हिन्दुस्तान का सबसे अधिक साफ-सुथरा व आधुनिक हवाई अड्डा है। इसे भव्य भी कहा जा सकता है। इसमें कोई शक नहीं कि हैदराबाद उतरने वाले प्रवासियों के दिल में यह एयरपोर्ट एक विशेष छाप छोड़ जाता है और लोग हैदराबाद को आधुनिक शहर के रूप में पहचानने लगते हैं। परंतु शहर के मध्य पहुंचने पर आज भी पुराने जमाने की यादें बड़ी खूबसूरती से दिखाई पड़ जाती हैं। हैदराबाद में मैंने वहां के विशिष्ट पकवानों का भरपूर आनंद लिया। कराची बेकरी की कुकीज व बिस्किट और हैदराबादी बिरयानी के स्वाद को मैं भूला नहीं सकता। पर्ल के आभूषण के लिए हैदराबाद महिलाओं के बीच अत्यधिक लोकप्रिय है। हैदराबाद प्रवास पर जाने वाले पति पत्नियों को खुश करने के लिए इन आभूषणों को खरीद सकते हैं। मगर उन्हें दुकानदार के साथ मोलभाव करना आना चाहिए। और साथ ही आनी चाहिए असली मोती पहचानने की कला। इनसे बचने के लिए कुछ नामी व स्थापित दुकानों में खरीदारी करना बेहतर होता है। बहरहाल, हैदराबाद में आधुनिकता एवं परंपराओं का अनोखा संगम है और यह इस शहर की पहचान है।
यह पहला मौका था जब मैं हवाई यात्रा के दौरान आसमान की खूबसूरती में डूब गया। वैसे तो नीले आसमान में बादलों के बीच में सफर करना अपने आप में एक अनोखा अनुभव होता है और अधिकांश यात्री बाहर की ओर झांकते देखे जा सकते हैं। लेकिन इनमें से अधिकांश व्यवसायी होने के कारण बाहर के सौंदर्य को देखते तो जरूर हैं मगर उनमें डूबते नहीं। वे अक्सर निनानवे के चक्कर में कुछ न कुछ सोचते रहते हैं और अपना मानसिक तनाव बरकरार रखते हैं। हनीमून जाने वाले नवविवाहित जोडे+ इस नैसर्गिक सौंदर्य को देखकर आसमान में विचरण कर सकते हैं। अकेले सफर करने पर मैं अक्सर खिड़की वाली सीट ही लेना पसंद करता हूं जिससे कि बाहर के नजारे में उड़कर अपनी कल्पनाशक्ति को ऊंचा उड़ा सकूं और लेखन में कुछ नवीनता ला सकूं। मगर इस बार दिल्ली से हैदराबाद की यात्रा के दौरान जो कुछ मैंने देखा वह अद्भुत था। बादलों ने कुछ ऐसे आकार बना रखे थे कि लग रहा था कि मानों मैं बादलों द्वारा बनाए गए पहाड़ों और पर्वत श्रृंखला के बीच में से उड़ रहा हूं। कई स्थान पर लगता कि मानों जहाज किसी घाटी के बीच में से गुजर रहा है। वैसे तो आसमान कभी एक-सा नहीं होता, हर बार यह अपना स्वरूप व रंग बदल लेता है। परंतु इस बार यह अत्यधिक सुंदर था। और दो घंटे की हवाई यात्रा इन घाटियों के नजारे को देखते-देखते कब बीत गई पता ही नहीं चला। अक्सर सोचता हूं कि आकाश से इतना सुंदर नजारा दिखाई पड़ता है तो अंतरिक्ष कैसा दिखता होगा। कल्पना करने पर महसूस होता है कि शायद वह उतना सुंदर न हो जितना मेरा आसमान। चूंकि वहां सिवाय अंधेरे और चारों ओर मोतियों जैसे फैले हुए टिमटिमाते तारों के अलावा कुछ भी नहीं। यह भयावह भी होता होगा। देखने की उत्सुकता तो है परंतु मन कहता है कि मेरा आकाश अंतरिक्ष से अधिक सुंदर और अद्भुत है जिसमें मैं अपने अस्तित्व को स्थापित कर सकता हूं।
पंछियों से मनुष्य को ईर्ष्या करनी चाहिए। चूंकि वे उनकी तरह आकाश में उड़ नहीं सकते। विज्ञान ने इस कमी को पूरा किया है। नयी व्यवस्थाओं ने हवाई यात्राओं को सस्ता, सुलभ और नये-नये शहरों में उपलब्ध करवाया है। दुआ करता हूं कि हर एक इंसान अपने जीवन में कम से कम एक बार हवाई यात्रा अवश्य करे, जिससे प्रकृति के इस अद्भुत नजारे को वो भी देख सके जो किसी स्वर्ग से कम नहीं।