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भविष्य का भय
डाक्टर संसार चंद्र नाम से उत्तर भारत के हिन्दी से जुड़े पाठक, लेखक, छात्र व अध्यापक जरूर वाकिफ होंगे। नब्बे से अधिक बसंत देख चुके इस शख्स से हो सकता है आज का युवावर्ग अंजान हो। परंतु कई पीढ़ियों के अभिभावक इन्हें अच्छी तरह जानते और पहचानते होंगे। इनसे भलीभांति परिचित होंगे। कारण है, डाक्टर संसार चंद्र ने शादी की कुंडली मिलाने के काम में विशेष ख्यातिप्राप्त की है। इनके हाथों से कई घर बसे होंगे तो इनके कहने पर शादी के लिए आने वाले कई रिश्तों पर अभिभावकों ने सोचने तक से इंकार कर दिया होगा। मूलतः हिन्दी के रिटायर्ड प्रोफेसर व स्थापित व्यंग्यकार ने पिछले कई वर्षों से भविष्यवाणी का काम जमकर किया और कई प्रमुख समाचारपत्रों में साप्ताहिक भविष्यवाणी का कॉलम लिखते आ रहे हैं। यह कोई सामान्य बात नहीं, लेखन, शिक्षण व भविष्यवाणी, तीन-तीन गुण एक ही व्यक्ति में। इसे किसी व्यक्तित्व में गुणों का संगम कहा जा सकता है। त्रिवेणी। गंगा, जमुना, सरस्वती की तरह यह तीनों क्षेत्र पूजनीय व श्रेष्ठ हैं। और तीनों क्षेत्र में शिखर पर रहना, इस बात पर यकायक यकीन करना मुश्किल लगता है, परंतु यह हकीकत है।
विगत दिवस हरियाणा साहित्य रत्न के लिए डाक्टर संसार चंद्र के चुने जाने पर, मैं विशेष रूप से मिलने के लिए उनके घर पहुंचा था। वैसे तो पूर्व में वे मेरी दो पुस्तक के लोकार्पण कार्यक्रम में पधार चुके थे और दूरभाष पर चर्चा होती रहती थी। मगर इस बार मिलने का कारण भिन्न था। मिलते ही एक बार को लगा कि वे काफी कमजोर हो चुके हैं। पूछने पर पता चला कि पेशाब की परेशानी से ग्रसित होने की वजह से डाक्टरों की देखरेख में हैं। आराम की सख्त हिदायत के बावजूद अपने घर पर स्थित कार्यालय में समय पर बैठने के बारे में पूछने पर, उनका यह कहना कि ‘शरीर की बीमारी अपना काम कर रही है और मैं अपना काम कर रहा हूं’, मुझे कहीं न कहीं सोचने को मजबूर कर गया था। इतना जीवट व्यक्तित्व को देखकर मैं बहुत दिनों बाद दांतों तले उंगली दबा रहा था। स्वयं को देखा तो लगा कि जरा-जरा सी परेशानियों से परेशान हो जाने वाला युवावर्ग इनसे साहस का परिचय ले सकता है। और क्यों न ले, आज का युवावर्ग जमीनी संघर्ष से बहुत दूर है। वो तो डिस्को, मोबाइल और फास्ट फूड की तर्ज पर पल रहा है। बहुत हुआ तो जिम में शरीर की मांसपेशियां बना ली। डाक्टर संसार चंद्र ने अपनी युवावस्था में जो परेशानियों झेली आज का नौजवान होता तो टूट जाता। सीमा के उस पार, विभाजन के दौरान एक रात अचानक उनके गांव में बर्बादी का जहर फैला तो रातों-रात बीवी और बच्चों के साथ उन्हें भागना पड़ा था। तब तक वे एक स्थानीय कालेज में हिन्दी के प्रोफेसर थे। उनकी जुबान में कई लोग अपने बच्चों को छोड़कर या भीड़ में गुम हो जाने से अकेले भागे थे। मगर वे एक तरफ अपने बच्चे को गोद में संभाले, दूसरे हाथ से बीवी के साथ जंगलों में भटकते रहे। और फिर कई दिनों बाद दिल्ली पहुंचकर आगे का जीवन शुरू किया। तम्बुओं में रहे और फिर वहीं पढ़ाना शुरू किया। अंत में पंजाब विश्वविद्यालय से डीन के पद से सेवानिवृत्त हुए। बातचीत में पता चला कि इस दौरान वर्तमान प्रधानमंत्री डाक्टर मनमोहन सिंह विश्वविद्यालय में एक सामान्य प्रोफेसर थे। मेरे पूछने पर कि क्या आपका उनसे आजकल कोई संपर्क है तो उन्होंने बड़ी सरलता से कहा था, ‘नहीं, और फिर वे अब प्रधानमंत्री बन चुके हैं।’
बिना पेंशन के इतने वर्षों से यह भविष्यवाणी ही है जिसने उनके रोजमर्रा के खर्चों का ख्याल रखा है। बातचीत के दौरान दूरभाष पर उनके कई फोन आते रहे, जिसमें से अधिकांश यह जानने के लिए थे कि क्या अमुक-अमुक कन्या या लड़के से रिश्ते के लिए बातचीत की जाए। और बड़ी सरलता से कहीं उनका जवाब होता था ‘हां’ तो कहीं ‘न’। हां, हर न के साथ में यह अवश्य कहते कि ये रिश्ता उचित नहीं होगा। किसी के बेटी या बेटे के बारे में कोई गलत टिप्पणी नहीं की। बहुत अधिक हुआ तो यह कहा जाता था कि यह संबंध दोनों के लिए फायदेमंद नहीं। और जहां ठीक लगता था वहां बड़े स्पष्ट ढंग से कहते थे कि यहां पर बातचीत की जा सकती है। आने वाला अधिकांश अभिभावक वर्ग उन पर अटूट विश्वास करता है यह उनके चेहरे पर से पढ़ा जा सकता है।
क्या भविष्य के बारे में जानना उचित व ठीक है? उत्सुकतावश मैं उनसे एक प्रश्न पूछ बैठा था। जिस व्यक्ति की रोजी-रोटी ही भविष्यवाणी से चल रही हो उनके मुंह से इस जवाब की मुझे उम्मीद न थी। जब उन्होंने कहा तो मैं सुनकर हैरान हुआ था ‘नहीं, भविष्य जानने से क्या फायदा। जीवन का राज राज ही बने रहना चाहिए अन्यथा जीवन जीवन नहीं रह जाता। उत्सुकता नहीं रहती। खुशी का वो मजा नहीं जो अनजाने में मिलने पर होती है या किसी दुःख के बारे में जान लेने से उसके आने की सोच-सोच कर आदमी जीवन को पहले से ही दुखी कर लेता है। इसलिए भविष्य के बारे में न ही जाना जाए तो अच्छा है।’ लेकिन फिर कुछ रुककर यह भी बोलते चले गए कि ‘हां, इसका यह फायदा हो सकता है कि बुरे वक्त का पता चलने पर हम उसकी तीव्रता कम कर सकते हैं। जब किसी का खराब समय देखता हूं तो उससे जरूर यह कह देता हूं कि भई थोड़ा धीरे चलो। जल्दबाजी नहीं। इस वक्त रिस्क लेना ठीक नहीं। व्यापार के नये प्रयोग ठीक नहीं। और इस तरह से किसी बड़े हादसे या नुकसान के होने से बचा जा सकता है।’ उनकी स्पष्टवादिता देख यह भी मैं पूछ ही गया, ‘तो क्या फिर आप हर पूछने वाले को सब कुछ सही-सही बता देते हैं?’ इसके जवाब को सुनकर तो मैं निरुत्तर था, ‘नहीं। वो भी सिर्फ इसलिए कि शत प्रतिशत सत्य तो किसी को भी नहीं पता। यह तो एक संभावना है। और फिर व्यक्ति के बौद्धिक स्तर तथा सहने व समझने की क्षमता देखकर उससे बात की जाती है अन्यथा कोई इसे गलत तरीके से भी ले सकता है।’
मैं, भाग्य को पूर्णतः स्वीकार करता हूं बिना किसी तर्क के। इसका अस्तित्व है और मुझे इस बात पर कोई शंका नहीं। हर सफल और असफल व्यक्ति को नजदीक से देखकर कोई भी इसे मान सकता है। अच्छे-अच्छे कर्म प्रधान पुरुषों को भाग्य के हाथों निराश होते हुए देखा गया है, तो सामान्य से व्यक्तित्व वालों को सफलता के चरम पर पहुंचते देखा जा सकता है। अगले पल की अनिश्चितता में जीता हुआ मानव ग्रहों के द्वारा अपने जीवन के भविष्य को युगों-युगों से कैसे पढ़ता आया है यह अपने आप में एक पहेली है। इसे विज्ञान मानें न मानें परंतु मनुष्य की बुद्धिमता व उसकी चमत्कारिक और हैरान कर देने वाली खोज जरूर कहा जाना चाहिए। बुरे वक्त में अच्छों अच्छों को पंडितों के चक्कर लगाते देखा जा सकता है। आदिकाल से राजे-महाराजे भी अपने भविष्य को लेकर आशंकित रहते थे। और दुर्भाग्य से बचने के लिए पूजा-पाठ व विभिन्न उपाय किया करते थे। अब यह अंधविश्वास है या सच, कहा नहीं जा सकता। लेकिन सफल लोगों को इसकी गिरफ्त में अधिक देखा है। कहीं न कहीं हमारी अनिश्चितता और भविष्य का डर हमें आने वाले कल को जानने और पढ़ने के लिए प्रेरित करता है। हो सकता है इसी की तीव्र भावना व इच्छा ने मनुष्य को आदिकाल से इस विज्ञान को आगे बढ़ाने में मदद की हो। एक संभावना के बारे में सोचें, अगर हम सब कुछ अपने बारे में जान जायेंगे तो जीवन कैसा होगा? शायद ईश्वर ऐसा होने न दे। और अगर हो भी गया तो हो सकता है कि फिर हमारी भावनाओं को इस तरह से बना दे कि हम जानकर भी अंजान बने रहें। अब इसी बात को देख लें, मौत हमारे भविष्य का सबसे बड़ा सत्य है, लेकिन क्या हम इसे रोजमर्रा के जीवन में याद रखते हैं? नहीं।