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समय का खेल
जीवन किसी नाटक से कम नहीं। अमूमन फिल्मों के अंत में दिखाये जाने वाली ट्रेजेडी को नाटकीय कहकर गंभीरता से नहीं लिया जाता और कहानी के बीच में आकस्मिक घटी किसी बड़ी घटना या फिर किसी बड़े उलट-फेर को देखकर दर्शक उसे काल्पनिक कहकर हंसी में उड़ा देते हैं। कई बार इसे डायरेक्शन की कमी या फिर डायरेक्टर को अव्यावहारिक घोषित कर दिया जाता है। मगर हकीकत यह है कि कल्पनाओं को भी विस्मित कर दें, ऐसा चमत्कार हर एक की जिंदगी में होता रहता है। यह एक या एक से अधिक बार भी हो सकता है। यह अच्छा और बुरा दोनों ही दिशा में घटित हो सकता है। हम अमूमन इसे अपनी-अपनी आस्थाओं से जोड़कर देखते हैं। शायद यही कारण भी है जो ईश्वर की कल्पना की जाती है। उसे याद किया जाता है। और इस घटनाक्रम से भक्तों का विश्वास सुदृढ़ होता है। यह सिलसिला युगों-युगों से चला आ रहा है। विज्ञान के विकास के बाद भी आमजन की आस्थाएं कम नहीं हुईं, उलटे बढ़ गयीं। और तो और आज भी डाक्टरों द्वारा मरीजों को अंत में भगवान के शरण में जाने के बारे में कहते हुए सुना जा सकता है। स्टीफन हॉकिंग्स जैसा भौतिक शास्त्री अपने आप में जीता-जागता आश्चर्य है। जीव विज्ञान और मेडिकल की तमाम थ्योरी को निरस्त करते हुए वे वर्षों से मृत्यु को चकमा दे रहे हैं। स्वस्थ आदमी भी इतना नहीं सोच सकता जितना वे शारीरिक रूप से पूरी तरह निष्क्रिय होकर भी नई-नई खोज कर रहे हैं। पता नहीं उनका भौतिक ज्ञान स्वयं के विषय में क्या सोचता होगा? शायद तभी वो भी विज्ञान के साथ दर्शन की बातें भी करते हैं। वैसे भी दर्शनशास्त्र तो फिर जीवन की इस अनिश्चितता को ही अमलीजामा पहनाने की कोशिश करता है। साहित्य भी पीछे कहां। कहावतें इसका उदाहरण बन सकती हैं। ‘जब ऊपर वाला देता है तो छप्पर फाड़ कर देता है’, इसका एक छोटा-सा उदाहरण बन सकता है।
इसे एक आम घटना कहें या समय का खेल। कुछ समय पूर्व की बात है, शराब के विरोध में तमाम उम्र संघर्ष करने वाले महात्मा गांधी की पांच निजी उपयोग में आने वाली वस्तुओं को अमेरिका से भारत वापस लाने के प्रयास में एक ऐसे व्यवसायी सज्जन की खबर आई थी जिसने अपना व्यवसायिक साम्राज्य शराब बेच-बेचकर बनाया। कुछ इस घटना को मात्र एक संयोग कह सकते हैं तो कुछ इसे दुर्घटना मान सकते हैं। कुछ दुर्भाग्यपूर्ण कहकर भी बच सकते हैं। कुछ एक के मतानुसार यह बात उतनी महत्वपूर्ण नहीं। मगर समय के इन रंगों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। सिर्फ राजनीति और व्यवसाय में ही ऐसे हादसे नहीं हैं। इतिहास अनहोनी घटनाओं से भरा हुआ है। विज्ञान के सिद्धांतों को समय ने हमेशा तोड़ा है और अधिक इतराने पर अंतरिक्ष में ले जाकर भ्रमित करके छोड़ दिया। यूं तो समय का स्वयं का कोई अस्तित्व नहीं मगर वो सबके अस्तित्व के लिए एक चुनौती है। समय के इन रंग-रूप को समझना यकीनन मुश्किल है।
ऐसा नहीं कि अनहोनी सिर्फ बड़ों व प्रभावशाली के साथ ही होती है। यह आम आदमी की जिंदगी में भी चमत्कार बनकर अमूमन आती रहती है। हम कई बार इसे देख-समझ नहीं पाते। यूं तो यह नुकसानदायक और फलदायक दोनों तरह की घटना-दुर्घटना हो सकती है। लेकिन लिया दोनों को एक ही तीव्रता के साथ जाता है। बस फर्क सिर्फ इतना मात्र है कि बुरे वक्त में समय का फेर कहकर हम चुपचाप हो जाते हैं जबकि अच्छा होने पर इसी समय को बलवान बना देते हैं। सच भी है, इसी समय ने रातोरात राजा को रंक बना दिया और शक्तिशालियों को अर्श से फर्श पर ला दिया तो कइयों को आश्चर्यजनक रूप से गांव की गली से शिखर पर पहुंचा दिया। अमेरिका के बराक ओबामा तो आज उदाहरण बने हैं, हमने तो लाल बहादुर शास्त्री को बहुत पहले शीर्ष पर पहुंचते देखा है। इन महापुरुषों को प्रतिभावान और संघर्षशील कहकर उन्हें इन पदों के योग्य स्वीकार किया जाये तो ऐसे कई उदाहरण मिल जायेंगे जो न तो योग्य थे न ही जिनकी उम्मीद थी फिर भी वे शीर्ष पर विराजमान हो गये। लेकिन फिर यह भी जरूरी नहीं कि शीर्ष पर सदा विराजमान ही रखे जायें, एक ही झटके में ऊपर से नीचे गिराये भी जा सकते हैं। सदियों से चली आ रही राज-सत्ताएं इतिहास के पन्नों में अचानक ही गायब नजर आती हैं। यह दीगर बात है कि कई राजाओं के गुण-अवगुण और योग्यता-निर्बलता के ऊपर हम बहस करने लग पड़ सकते हैं। मगर फिर भी समय की बलिहारी को कौन झुठला सकता है? सच भी है जीवन अनिश्चितताओं से भरा हुआ है। तभी तो कहा भी जाता है कि कल का क्या भरोसा?
क्या युवराज सिंह ने कभी सोचा था कि उसके साथ ऐसा होगा? कम से कम, जब उन्होंने खेलना शुरू किया था तो यह कभी नहीं सोचा होगा कि एक दिन देश के लिए खेलते हुए वो विश्व प्रसिद्ध खिलाड़ी बनेंगे। चलो ऐसा सोच भी लिया तो यह तो कभी नहीं कह सकते थे कि एक ही ओवर की छह के छह बाल पर छक्के मार ही देंगे। कोई भी बड़े से बड़ा खिलाड़ी यह कभी भी दावे से नहीं कह सकता। मगर समय ने युवराज को इसका भी एक सुनहरा अवसर दिया जिसे उन्होंने हकीकत में बदला। बात यहीं नहीं रुक जाती, समय का खेल तो निरंतर जारी रहता है। देश के लिए खेलने वाले हर एक खिलाड़ी का विश्वकप जीतना सपना होता है मगर कौन मैन ऑफ द मैच बनेगा? कोई अधिकारपूर्वक नहीं कह सकता। क्रिकेट बायचांस में ऐसी उम्मीद लगायी जा सकती हैं, मगर इसमें जोखिम कम नहीं। मगर समय ने यह सम्मान भी युवराज को दिया। लेकिन फिर सब कुछ जीतकर अचानक जीवन ऐसा रिवर्स गेयर लगा देगी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता। जो क्रिकेट के खिलाड़ी युवराज के साथ हुआ वो समय के खेल का दर्द से भरा हुआ अमानवीय चेहरा है। उंगली पकड़कर इतनी ऊंचाई तक ले जाकर अचानक हाथ छोड़ देना, यही कहा जाना चाहिए। मगर क्या किया जा सकता है? इस खेल के अपने नियम हैं। तो क्या इसे यूं ही मान लिया जाये? नहीं, यह स्वीकार नहीं किया जा सकता। उलटे बहुत कुछ किया जा सकता है। सच्चे खिलाड़ी को जीतने का प्रयास सदा करते रहना चाहिए। कोच की माने तो मैच में कठिन से कठिन परिस्थितियां आ जाये, हिम्मत नहीं हारनी चाहिए। जीतने का मंत्र भी यही है, पूरी तरह से केंद्रित होकर लक्ष्य पर निगाहें होनी चाहिए। क्रिकेटर को तो वैसे भी हर बॉल को खेलना होगा। चाहे फिर वो जितनी भी चकमा दे।
इसमें कोई शक नहीं कि हरेक का दुःख उसके लिए विशिष्ट ही होता है। फिर चाहे वो सफल एवं अति लोकप्रिय व्यक्ति ही क्यूं न हो। सब कुछ खुद ही झेलना पड़ता है। यकीनन युवराज कठिन दौर से गुजर रहे हैं। मगर उन्हें इस वक्त समय के वीभत्स रूप-रंग से डर का अफसोस नहीं, बल्कि उसके उस पक्ष पर विश्वास रखना होगा जिसने उन्हें शीर्ष तक पहुंचाया था। यह सच है कि युवराज का जीवन किसी फिल्म से कम नहीं लेकिन अभी उन्हें आगे और कहानी लिखनी है। फिल्म को ऐसे मोड़ पर ले जाना है जहां समय को स्वयं आश्चर्य का ठिकाना न हो। फिल्मों में हमने संघर्ष करते हुए अंत में जीतकर निकलते हुए कई नायकों को देखा है। सफलता निरंतर चलते रहने वालों के ही कदम चूमती है। फिल्म में जीत सदा नायक की ही होती है या यूं कहें कि जो अंत में जीतता है वही नायक होता है। युवराज का अब तक का जीवन नायक वाला रहा तो फिर आगे भी ऐसा ही होगा। ऐसी उम्मीद ही नहीं विश्वास भी है। बहरहाल, उपरोक्त घटनाएं हमें बहुत कुछ बता जाती हैं। जीवन के अर्थ समझा जाती हैं। जीवन में जीत के पैमाने भी अलग-अलग हैं और दृष्टिकोण भी। हम स्वयं को टटोलें तो हर एक जीवन किसी फिल्म से कम नहीं। हम फिल्म के पर्दे पर नायक के दुःख में रो पड़ते हैं तो सुख में ताली बजाते हैं मगर स्वयं पर आपत्ति आते ही टूटने लगते हैं। जबकि हमें हर पल किसी भी अनहोनी के लिए तैयार रहना चाहिए। यह मानकर चलना चाहिए कि जीवन में सब कुछ संभव है। यही सब देखकर सच ही कहा है, फिल्म वालों ने, ‘जिंदगी एक नाटक है हम नाटक में काम करते हैं।’ लोकप्रिय गीत तो और भी हैं फिल्मी संगीत में, मगर फिर इन पंक्तियों के भावार्थ में तसल्ली अधिक मिलती है कि ‘आने वाला पल जाने वाला है, हो सके तो इसमें जिंदगी…’