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एक लंबा सफर
क्या समय का अस्तित्व है? यह एक मुश्किल सवाल है। इस मुद्दे पर विज्ञान भी अंधेरे में तीर चलाता है और अंतरिक्ष में जाकर तो भ्रमित हो जाता है। बहरहाल, समय की गति को न तो तेज किया जा सकता है न ही धीमे। इसे रोकना तो फिर असंभव है। सच तो यह है कि पीछे मुड़कर भूतकाल में देखा तो जा सकता है, मगर वहां फिर से जाया नहीं जा सकता। भविष्य के गर्भ में तो फिर रहस्य ही होता है। समय का स्वयं अस्तित्व हो न हो मगर यह आम आदमी से लेकर महानतम बलशाली राजाओं के निजी जीवन ही नहीं वंश तक के अस्तित्व समाप्त होने का साक्षी रहा है। तभी कहा जाता है कि समय बहुत बलवान है। और न जाने इसी तरह की अनगिनत विचारधाराएं एवं धारणाएं हमारे आम बातचीत से लेकर अचेतन मन तक में निरंतर चलती रहती हैं।
पच्चीस वर्ष का कालखंड जीवन का एक बहुत बड़ा हिस्सा होता है। और अगर यह युवा अवस्था से लेकर अधेड़ होने के बीच का हो तो महत्वपूर्ण भी हो जाता है। मौलाना आजाद नेशनल इंस्टिच्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (इंजीनियरिंग कॉलेज) से निकलने के पच्चीस वर्ष पूर्ण होने पर सहपाठियों द्वारा फिर से मिलने का कार्यक्रम बनाया गया था। ‘रजत जयंती पुनर्मिलन समारोह’ भोपाल में कॉलेज प्रांगण में ही होगा, यह जानकार मैं उत्साहित हुआ था। अगर आपका जीवन घटनाओं से भरा हुआ है तो वह तेजी से कब बीत जाता है, पता नहीं चलता। यादें भी धूमिल होती रहती हैं। समय के मस्तिष्कपटल पर बार-बार नया लिखने पर पुरानी बातें कई सतहों के नीचे दबकर अदृश्य हो जाती हैं। ऐसे में अगर अधिकांश मित्र कालेज से निकलने के बाद पहली बार मिल रहे हों तो सबको एकदम से पहचान लेना संभव नहीं होता। लेकिन फिर भी बहुत अधिक मुश्किल नहीं हुई थी। वही आत्मीयता, वही अपनापन, वही भावनाएं। यह सब देख बहुत देर तक विश्वास ही नहीं हुआ कि इतना समय बीत चुका है। हैरानी हुई थी, मगर सत्य है, इतने वर्षों के बाद बचपन के दोस्त मिलते ही मैंने अपने व्यवहार में भी परिवर्तन महसूस किया था। और यह युवावस्था में प्रारंभिक दौर में फिर से पहुंचती दिखाई दी थी। फिर वही अल्लहड़ता, उन्मुक्तता, आवारापन। जिह्ना पर अनायास ही अशुद्ध शब्दों का बिना किसी रोक-टोक के आना इसका सबसे बड़ा उदाहरण था। और अमर्यादित भाषा के प्रयोग के बावजूद सामने वाले का बुरा न मानना इसे प्रमाणित कर रहा था। ताज्जुब तो इस बात को देखकर हुआ कि सभी उसी तरह से पेश आ रहे थे जिसके लिए वो जाने व पहचाने जाते थे। और वे अपनी-अपनी विशिष्ट शैली में ही वार्तालाप में भाग ले रहे थे। पुरानी बातें खुलकर की जा रही थी। बचपन के साथियों के बीच वैसे भी कोई पर्दा कहां रहता है। जबकि बड़ी उम्र के साथियों के साथ ऐसे सरल और सपाट व्यवहार की उम्मीद नहीं की जा सकती। लेकिन यहां सब कुछ वही था, वही दीवानगी थी, जिसमें निरंतर गूंज रहे थे ठहाके। युवावस्था में की जाने वाली प्रेम संबंधित ज्ञान की विशिष्ट विचारधारा एक बार फिर वार्ता के केंद्र में थी। और कहीं से प्रतीत नहीं होता था कि हम जवान बच्चों के मां-बाप बन चुके हैं और दादा-नाना बनने के कगार पर खड़े हैं। हंसी-मजाक, चुटकुले, छेड़छाड़ में कोई भेदभाव नहीं था। जिसके बीच पुराने प्रेम के किस्से नयी बोतल में पुरानी शराब की तरह लग रही थी। किसी के दिल में पुराना दर्द उठा हो तो इस संभावना को सिरे से नकारा भी नहीं जा सकता। ऐसे मदमस्त व आत्मीय माहौल ने एक बार फिर सोचने के लिए मजबूर किया था कि क्या वास्तव में पच्चीस साल पूरे हो गये? किसी के कमर का मोटापा तो किसी के सिर के चमकीलेपन ने कुछ-कुछ इस बात का अहसास कराया था। जो समझदार थे वे इस कार्यक्रम में अकेले ही आये थे। और जो जरूरत से ज्यादा पत्नी-भक्त थे वे परिवार सहित पधारे थे। उनके बातचीत व व्यवहार में परिवर्तन ने थोड़ी हैरानी जरूर पैदा की थी, लेकिन उसका कारण समझने में भी देर नहीं लगी। और फिर इन सब बातों ने भी बातचीत में मजाक का एक और विषय जोड़ दिया था। बहरहाल, परिवार सहित आये सहपाठियों ने ऐसा करके तमामउम्र के लिए मुसीबत मोल ली थी। ऐसा कइयों का मानना था। न जाने कौन-सी ऐसी बात घरवाला/घरवाली को पता चल जाये जो हो तो छोटी और आज की तारीख में अप्रासंगिक मगर फिर भी तिल का ताड़ बना दी जाये।
ठंड की छुट्टियों में हिंदुस्तान के तमाम कॉलेजों में इस तरह के रजत जयंती समारोह कार्यक्रम मनाये जाते हैं। इस उम्र तक पैसा और पॉवर के क्षेत्रों में आप शिखर के करीब होते हैं और आपका जीवन काफी हद तक आपके नियंत्रण में होता है। शरीर के पुर्जे आवाज तो करने लगते हैं लेकिन उनमें अभी भी बहुत हद तक दम-खम होता है। इसलिए मस्ती का पूरा आलम होता है। बड़े-बड़े होटलों में दावत, जिसमें मदिरा खुलेआम पूरी रफ्तार के साथ बहती है। और यह दो से तीन दिन का कार्यक्रम आधुनिक जीवन की नीरसता और उबाऊपन को दूर करने में सहायक होता है। अधिकांश कार्यक्रमों में कॉलेज के अपने-अपने समय के तत्कालीन प्राध्यापकों को भी आमंत्रित किया जाता है। कुछ एक दूसरी दुनिया की यात्रा में जा चुके होते हैं तो कई शरीर के हाथों मजबूर देखे जा सकते हैं। उनकी बुजुर्ग अवस्था एक बार फिर समय की निष्ठुरता को प्रमाणित करती है। मैं कइयों की वर्तमान शारीरिक हालात को देखकर स्तब्ध हुआ था। ये पुराने मजबूत किलों को खंडहर में परिवर्तित होते देखने जैसा अनुभव था।
समय की बलिहारी तो और भी कई तरह से देखी जा सकती है। इन पच्चीस वर्षों में कोई छात्र करोड़पति बन जाता है तो कोई अपनी फटेहाली को छुपाने में प्रयासरत रहता है। कोई चीफ इंजीनियर बन जाता है तो कोई जूनियर इंजीनियर ही रह जाता है। कोई विदेश में नाम व दाम कमा रहा होता है तो कोई अपने ही देश में वीराना कहलाता है। आदि-आदि। यूं तो इस असमानता के बावजूद निश्छल बचपन की भावना से मिलने की बात ही प्रबल होती है। और यह भी सत्य है कि एक-दूसरे से मात्र यह पूछा जाता है कि तू कैसा है? और कहां है? अमूमन यह नहीं पूछा जाता कि क्या है? या क्या बन गया है? मगर साथ ही कुछ हद तक यह भी सच है कि पैसा और पॉवर का नशा कब किसके सिर पर चढ़कर बोल पड़े, कहा नहीं जा सकता। कई चेहरों पर इसे पढ़ा जा सकता है। ऐसे में बचपन का प्रेम कभी-कहीं एक स्वांग बनकर रह जाता है। समय के उतार-चढ़ाव रिश्तों की बुनियाद में घुसकर कब उथल-पुथल मचा देते हैं, ऊपरी तौर पर तो पता नहीं चलता। लेकिन धीरे-धीरे बातचीत में अपना रंग दिखा ही देते हैं। यूं तो किसी के चेहरे की रौनक तो कइयों के होंठों का सूखापन एक-दो दिन की मस्ती में कहीं छुप जाते हैं और आमतौर पर पढ़े नहीं जाते। लेकिन जब उभरते हैं तो दिल पर सीधे प्रहार कर टीस पैदा करते हैं। मस्ती में खाते-पीते, चिल्लाते और नाचते रहो तो सब ठीक है, रुककर सोचते ही क्या खोया, क्या पाया की शुरुआत हो जाती है। असल में समय अपनी रफ्तार से आपके जीवन का हरेक पक्ष काटते-पीटते व जोड़ते हुए निरंतर आगे बढ़ता रहता है। इन सबके बावजूद अट्टहास, छेड़छाड़, मस्ती और रिश्ते के बीच चुलबुलापन समय के रूखेपन को चुनौती देता है। और इनसान समय के रेतीले सफर पर अपना मील का पत्थर गाड़ने की एक और कोशिश करता है, जिस पर इस बार लिखा हुआ था रजत जयंती समारोह। यह रास्ता आगे चलकर स्वर्ण जयंती समारोह के मोड़ से भी गुजरेगा। हम फिर मिलेंगे। इन्हीं आशाओं के साथ दोस्त विदा हुए थे। मगर इस बार आंखें नम हो रही थीं क्योंकि सबको पता है कि समय बहुत कातिल है। यह किसी को नहीं बख्शता। पता नहीं कितने साथी अगले दौर तक पहुंचने से पहले ही समय के हाथों हार जायें।