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ऊर्जा के नये स्रोत
ब्रह्मांड, आकाशगंगा, तारामंडल, सौरमंडल से लेकर हमारी पृथ्वी में चारों ओर ऊर्जा बिखरी हुई है। ब्लैक होल तो वैसे भी ऊर्जा का अंधा कुआं है जो अपने अंदर ग्रहों व तारों को निगलता रहता है। इस तरह से इसकी ऊर्जा बढ़ती रहती है और वो और अधिक ताकतवर और पेटू होकर भारी होता जाता है। बिग बैंग थ्योरी पर यकीन करें तो महाविस्फोट के बाद ब्रह्मांड का निरंतर प्रसार भी ऊर्जा का फैलना ही है। किसी तारे का जन्म ऊर्जा के कारण ही होता है तो ऊर्जा के समाप्त हो जाने पर वही तारा मृत अर्थात ठंडा होकर समाप्त माना जाता है। यह दीगर बात है कि इनका जीवनकाल अरबों वर्ष का होता है। अन्य तारों की तरह हमारा सूर्य भी निरंतर ऊर्जा फेंक रहा है। हमारा जीवन इसी ऊर्जा से संचालित है। जीव-जंतुओं से लेकर वृक्ष का हरा-भरा होना भी इसी ऊर्जा से है। हवाएं पृथ्वी के वायुमंडल में बहती रहती हैं। नदियों के प्रवाह, समुद्र के ज्वारभाटा और ज्वालामुखी में भी ऊर्जा ही है। सब कुछ ऊर्जा से चलता है और शरीर में ऊर्जा खत्म होते ही जीवन समाप्त। प्रकृति की व्यवस्था का निरालापन देखिए कि यहां ऊर्जा का कभी नाश नहीं होता। सिर्फ रूप-स्वरूप-माध्यम का परिवर्तन हो जाता है। ठीक भी है वरना ऐसे में तो सृष्टि का विनाश हो जाता। किसी एक बिंदु पर सर्वनाश हो सकता था। इसीलिए तो कहते हैं कि यह शाश्वत और निरंतर है। हमने ऊर्जा के इसी गुण का उपयोग (दुरुपयोग) किया। ये मनुष्य ही है जिसने प्राकृतिक आवश्यकता के अतिरिक्त भी ऊर्जा का अपनी तरह से अपने लिये उपभोग करना शुरू किया। शायद इसी चाहत ने हमें अन्य जानवरों से अलग भी किया। सर्वप्रथम हमने आग की ऊर्जा का इस्तेमाल करना शुरू किया और इसके लिए लकड़ी फिर कालांतर में कोयले का दोहन किया। आदिकाल से नदी के बहते पानी में छिपी शक्ति को पहचाना तो जानवरों की शक्ति (बैल, गधा, ऊंट, हाथी, कुत्ते) को हमने बोझा ढोने व सवारी में इस्तेमाल किया। गुरुत्वाकर्षण शक्ति सदियों से जाने-अनजाने हमारे प्राकृतिक ऊर्जा के स्रोत रहे हैं। धीरे-धीरे हमने पेट्रोल व डीजल पर प्रयोग किया और फिर बिजली का उत्पादन किया। यह सुविधाजनक, साफ-सुथरा, सहज रूप में उपलब्ध और उपयोग में भी सुरक्षित है। फलस्वरूप उपभोक्ता द्वारा जमकर भोगा जाता है।
मुश्किल तब प्रारंभ हुई जब हमने अपनी आदतों और इच्छाओं को अत्यधिक बढ़ा लिया। सवाल यहां उठता है कि क्या हमारे पास असीमित बिजली है? अपने चारों ओर के हालात को देखकर ऐसा लगता नहीं। कोल आधारित थर्मल पावर स्टेशन का विस्तार कोयले के सीमित भंडार के कारण संभव नहीं है। वहीं हाईडल प्रोजेक्ट ने नदियों का सत्यानाश कर रखा है। कई जगह तो नदियों का अस्तित्व ही समाप्त हो चुका है। बड़े बांध यूं भी गांवों को डुबो देते हैं और पर्यावरण के लिए हानिकारक बन जाते हैं। ऐसे में हमें नये ऊर्जा के स्रोतों को अवश्य ढूंढ़ना होगा और ढूंढ़ा जा रहा है। अभी तक उपयोग में आने वाले ऊर्जा के पारंपरिक ईंधन के इस शताब्दी में ही समाप्त हो जाने की संभावना है। नदियों की सीमित धारा का अत्यधिक दोहन करने पर प्रकृति के संतुलन में व्यवधान भी उत्पन्न होता है। यूं तो आणविक ऊर्जा को भी मानवीय उपयोग में लाने की बड़ी तैयारी है, मगर इसमें सुरक्षा और महंगी तकनीक आज भी एक बड़ा मुद्दा है और फिर इसकी तकनीकी जानकारी का विध्वंस के रूप में उपयोग किया जाना मानवीय सभ्यता और व्यवस्था के लिए एक चुनौती है।
आदमी ने अपने विकासक्रम के प्रारंभ में ही सूर्य की गर्मी को महसूस किया होगा। दिनभर उपलब्ध इस ऊर्जा को बड़े पैमाने पर उपयोग में लाने के लिए उसका ध्यान इस ओर क्यूं नहीं गया, यह एक पहेली है। यूं तो यह कोई नयी परिकल्पना नहीं है। दशकों से सोलर-कुकर के बारे में सुना जाता रहा है। ट्रैफिक लाइटों का सौर-ऊर्जा से चलना अब आम बात है। कार्यालय, कारखानों एवं कई हॉस्टल, अस्पताल और होटलों में सौर-ऊर्जा से चलने वाले वाटर हीटर का प्रयोग काफी समय से व्यवहारिक रूप में चला आ रहा है। समय के साथ इनमें विशेषताएं और सरलता जुड़ती चली गई। सौर-ऊर्जा के छोटे स्तर के बिजली उत्पादन के संयंत्र गांव, कस्बों और दूर बीहड़ क्षेत्रों में लगाये जाने लगे। सौर-ऊर्जा आधारित वाहन का प्रयोग अभी सड़कों पर उतरना बाकी है। हां, पानी साफ करने की प्रणालियों में सौर-ऊर्जा का प्रयोग हो रहा है। अर्थात सौर-ऊर्जा का उपयोग अभी अपने शिशुकाल में है। यह जानते हुए भी कि सौर-ऊर्जा असीमित है और इसका उपयोग करने पर प्रकृति का दोहन नहीं होता। मनुष्य का खुराफाती दिमाग दिनभर धूप की गर्मी को चूसे तो भी सूर्य की ऊर्जा समाप्त होने से रही। सूर्य तो इसे स्वयं मुफ्त में हमारी ओर फेंकता रहता है। तो फिर इस ऊर्जा पर हमारे वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों का ध्यान पूर्व में केंद्रित क्यों नहीं हुआ? यह सवाल अमूमन नहीं किया जाता। और उसके जवाब में भी कोई नयी बात नहीं उभरती। जो कठिनाइयां गिनाई जाती हैं उनका समाधान तो ढूंढ़ा जा सकता था। गंभीरता से कहा जाए तो इसका प्रयोग पूर्व में आ जाने से प्रकृति के अन्य स्रोत का अनावश्यक दोहन नहीं होता और संतुलन बहुत हद तक बना रहता।
बहरहाल, आज परिस्थितियां भिन्न हुई हैं, सौर-ऊर्जा के बारे में हर क्षेत्र के लोग गंभीर हैं। शासकीय, विज्ञान और व्यवसाय, तीनों स्तर पर काम हो रहा है। यकीनन यह भविष्य में बहुत बड़े व्यवसायिक हित का क्षेत्र बनने जा रहा है। जिस तरह से मात्र दो दशक में संचार के क्षेत्र ने कई अरबपति पैदा कर दिए और समाज में संचार-क्रांति ला दी। ऐसा ही कुछ सौर-ऊर्जा के द्वारा भी होने जा रहा है। विश्व में प्रचलित कई रिपोर्ट पढ़ने पर ऐसा महसूस होता है कि मानवीय आधुनिक समाज नयी ऊर्जा क्रांति की राह देख रहा है। ऐसे में सौर-ऊर्जा के क्षेत्र में असीमित संभावना है। नये व्यवसाय के अवसर की तलाश में बैठे युवा इस ओर ध्यान दे सकते हैं और विज्ञान व तकनीकी में कुछ नया करने वाले जिज्ञासु इस क्षेत्र में पहल कर सकते हैं। यह गैर पारंपरिक ऊर्जा के स्रोत शोध छात्रों व महत्वाकांक्षी इंजीनियर के लिए महत्वपूर्ण चुनौती बनने जा रहे हैं। भविष्य में बड़े-बड़े औद्योगिक व तकनीकी संस्थानों में सौर-ऊर्जा का विभाग कंप्यूटर साइंस और इलेक्ट्रॉनिक के समकक्ष खड़ा हो जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
सौर-ऊर्जा सुनने में बहुत सरल और सामान्य-सी बात लगती है। लेकिन इसकी अपनी चुनौतियां हैं। यह ऊर्जा दिन में ही उपलब्ध होती है। दूसरा, साल के कुछ महीनों में इसकी उपलब्धता दिन में भी सुनिश्चित नहीं की जा सकती। अधिक बरसात वाले क्षेत्रों में सूर्य के दर्शन हफ्तों नहीं होते। पृथ्वी के किसी भाग में तो धूप प्रचुरता में उपलब्ध है तो कहीं-कहीं बिल्कुल भी नहीं। वार्ताओं से पता चला है कि सौर-ऊर्जा को स्टोरेज करना (संग्रहीत करना) आज की तारीख में वैज्ञानिक रूप से मुश्किल और महंगा कार्य है। यही कारण है जो इकोनॉमिक दृष्टि से आमजन द्वारा उपयोग किया जाना संभव नहीं। दूसरा इस स्टोर की गई ऊर्जा को दूसरी जगह वितरण (डिस्ट्रिब्यूट) करना भी टेढ़ा कार्य है। सौर-ऊर्जा को स्टोर करने वाली बैटरी और सैल से निकलने वाला बेकार पदार्थ अपने आप में एक मुसीबत बन जाते हैं। संक्षिप्त में इसके रूप और स्वरूप व कार्यप्रणाली पर लंबा काम होना बाकी है।
मनुष्य ने हर चुनौती को स्वीकार किया है। जब वो महान नदियों की तेज धाराओं को रोक सकता है। सूक्ष्मतम, दिखाई न देने वाले अणु-परमाणु में विस्फोट कर अपने लिए उपयोगी बना सकता है, तो यह कोई मुश्किल कार्य नहीं। उपरोक्त चुनौतियों को स्वीकार कर जल्द ही उस पर भी विजय प्राप्त कर ली जाएगी। यह यकीनन किसी भी और पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों से बेहतर, सुलभ, सरल और सस्ता होगा। यह सामरिक एवं सुरक्षा की दृष्टि से भी आणविक ऊर्जा से बेहतर होगा। न किसी लीकेज का डर, न किसी दूसरे राष्ट्र पर परमाणु संयंत्र के लिए आवश्यक ईंधन के लिए निर्भर होने की आवश्यकता। सौर-ऊर्जा अमीर-गरीब सभी के लिए हर वक्त हर स्थान पर उपलब्ध है।
आज हमने बिजली के सैकड़ों उपकरण बना लिये। हमारा जीवन बिजली के बिना असंभव है। निर्भरता अकल्पनीय रूप से बढ़ चुकी है। ऐसे में एक तरफ बिजली को हरेक घर पहुंचना अभी भी एक समस्या है तो साथ ही उसकी निरंतर सप्लाई दूसरा मुद्दा है। दोनों ही फ्रंट पर आधुनिक मनुष्य संघर्ष करता प्रतीत होता है। सप्लाई और डिमांड पर बढ़ता दबाव विज्ञान और बाजार को गैर-पारंपरिक ऊर्जा के स्रोत की ओर ले जाने के लिए बाध्य हुआ।
मुझे तो देखना यह है कि आदमी ने जिस तरह से पेट्रोल-डीजल और खनिजों पर जबरन एकाधिकार जमाकर उसे बेचना शुरू कर दिया है। वो अदृश्य सूर्य किरणों को कैसे रोकता है, हर घर में पहुंचने से?