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कुत्ते पालने के फायदे
क्या आपने अपने घर में कुत्ता पाल रखा है? अगर इस प्रश्न का उत्तर ÷नहीं’ में है तो यह लेख पढ़ा जा सकता है। मैं आज कुत्ते पालने के पक्ष में कुछ फायदे गिनाने की कोशिश करूंगा। जिनके घरों में पहले से ही कुत्ते पले हुए हैं वो ये पढ़कर शायद मेरे पक्ष में हो जाएं। बहरहाल, इस लेख को सिर्फ दो वाक्य में खत्म करना हो तो कहा जा सकता है कि कुत्तों के पालते ही सुबह की सैर मजबूरी बन जाती है और घर की सुरक्षा मुफ्त में हो जाती है। पशु-पक्षियों में सबसे पुराना इंसान का साथी कुत्ता ही है लेकिन फिर भी हमारे विश्व मानवीय समाज में अवांछित शब्दों की सूची बनाई जाए तो उसमें एक ‘कुत्ता’ अवश्य होगा। दूसरी तरफ आज भी घरों में पाले जाने वाले जानवरों की वांछित सूची में यह शीर्ष पर है। अजीब भ्रम की स्थिति उत्पन्न होती है। कुत्ते में कमी है या हमारी सोच में? यह मुश्किल सवाल है। इसे भारी विडंबना कहकर बच सकते हैं। लेकिन फिर कुत्ते पर इतनी आसानी से लेख समाप्त नहीं किया जा सकता।
एक मनोवैज्ञानिक चिकित्सक ने एक रूखे व तलाक के कगार पर पहुंच चुके दंपति को कुत्ते पालने की सलाह दी थी। दोनों इंसान के बच्चे को गोद लेने को तैयार नहीं होते। डाक्टर की ऐसी सोच थी कि कुत्ते के पिल्ले से उनके बीच में प्रेम जागेगा, दोनों आधुनिक नारी-पुरुष में सेवा-भाव भी उत्पन्न हो सकता है। डाक्टर के मतानुसार ये नन्हा-सा जीव दोनों को नजदीक लाएगा और अंत में वे अपना बच्चा पैदा करने में उत्सुक हो सकते हैं। और यह सच साबित हुआ। कुछ ही दिनों में दोनों हाई प्रोफाइल पति-पत्नी को अपने छोटे से पप्पी (कुत्ते के बच्चे) से प्रेम हो गया और वे उसकी देखभाल के लिए अकसर घर जल्दी आने लगे। उसकी सेवा, ख्याल और फिर उसके साथ खेलने के चक्कर में रहते। उसके लिए विशेष खाना लाया जाता और फिर साथ-साथ या फिर एक बनाता दूसरा खिलाता, समय-समय पर नहलाना, साफ-सफाई करना और फिर तबीयत खराब होने पर डाक्टर के पास ले जाना। न जाने, ऐसा करते-करते कब उनके बीच में प्र्रेम का बीज अंकुरित हो गया, पता ही नहीं चला। बड़ी अजीब कहानी लगती है, मगर नयेपन की खोज में पागल हॉलीवुड में इस पर फिल्म भी बनी और बॉलीवुड ने भी अपने तरह की कुत्ते-प्रेम पर कई फिल्म बनाई। अर्थात संक्षिप्त में फिल्म वालों को भी एक विषय मिल गया। तो दूसरी ओर इन फिल्मों को देखकर कुत्ते पालने वालों को गर्व करने का एक और मौका। अपने कुत्ते के बारे में बड़ाई करने और पड़ोसियों पर प्रभुत्व जमाने का सुनहरा अवसर।
शूगर के मरीज को सुबह-शाम की जबरन सैर करने के लिए अपने घर में एक कुत्ता पाल लेना चाहिए। मजबूरन आपको पैदल निकलना ही पड़ेगा और आप स्वस्थ होंगे। शूगर ही क्यों, आज की अधिकांश बीमारियां, व्यायाम न करने और चर्बीयुक्त भोजन व देर रात जागने के कारण होती है। ऐसे में कुत्तों के कारण सुबह उठना और सुबह उठने के लिए रात जल्दी सोना, शराब और नाइट पार्टियां अपने आप कम हो जाएंगी। यही नहीं, आज के अहम् की दुनिया में जहां इंसान अपने साथी की बातों व व्यवहार को बर्दाश्त नहीं कर सकता वहां यह कुत्ता आपके अकेलेपन का साथी हो सकता है। कुछ कहेगा नहीं सिर्फ दुम हिलाएगा। बड़ी-बड़ी नायिका-खलनायिकाओं के कुत्ते प्रेम को कई रूप में कई तरह से सुना गया है, देखा गया है, पढ़ा गया है। कई सारी कहानिया-किस्से हैं। और यह सच है कि कुछ खुशकिस्मत कुत्ते नरम-नरम लेकिन गर्माहट से भरे हुए रेशमी पलंगों पर सुंदर नायिकाओं व स्मार्ट नायकों के पास ही सोते हैं। यह अपने दुश्मन को नीचा दिखाने के लिए भी काम में आ सकता है। एक नायक के बारे में सुना है कि उसने अपने प्रतिद्वंद्वी हीरो को जलील करने के लिए अपने कुत्ते का नाम उक्त हीरो से मिलता-जुलता रख डाला। और इस तरह से उसकी भड़ास निकलती। कुत्ते पालने का यह अद्भुत फायदा है। सुना तो यह भी है कि पुराने जमाने के रोबीले अदाकार राजकुमार कुत्ते प्रेम के लिए बहुत मशहूर थे। और वे आने वाले अपने हर मेहमान का स्वागत अपने प्यारे कुत्ते के ऊपर कुछ डायलाग मारकर किया करते थे। हो सकता है उनकी इतनी जबरदस्त डायलॉग डिलीवरी इसी आदत के कारण चमकी हो।
छोटे कुत्तों की किस्मत यहां ज्यादा अच्छी होती है जो घरों में घुसकर कमरों में तांक-झांक भी कर लेते हैं। ये ढेले भर का काम भी नहीं करते। और हमेशा घर में किसी एक सदस्य के पीछे-पीछे चलते-फिरते पाये जाएंगे। ये पक्के स्वामी-भक्त होते हैं। उन्हें पता होता है कि घर का कौनसा सदस्य महत्वपूर्ण है। किसकी आज्ञा का पालन करने पर फायदा होगा। और यह उसके अनुयायी बन जाते हैं। अधिकतर घरों में महिलाओं का वर्चस्व होता है। वो अमूमन दिनभर घर में रहती हैं। रसोईघर में भी उनका पूरा नियंत्रण होता है। और यह अक्सर उनके पीछे-पीछे घूमते देखे जा सकते हैं। यहां तक कि किसी मेहमान के आने पर ड्राइंग-रूम में भी मालकिन के पैरों के नजदीक अधिकारपूर्वक बैठ जाते हैं। ऐसे में घर के मालिक की परिस्थिति को देखा व समझा जा सकता है। घर की लड़की अगर जवान उम्र की है तो प्रेमी के लिए यह खलनायक तक बन जाते हैं। प्रेमिका के नजदीक जाने से रोकने की सबसे बड़ी दीवार। अकसर छोटे किस्म के कुत्ते तो गोद में सो जाते हैं, ऐसे में प्रेमी अपना सिर कहां रखेगा? ये तो फायदा नहीं नुकसान का उदाहरण दिखाई देता है? नहीं? बहरहाल, एक कन्या के पिता के लिए तो यह एक आखिरी सहारे की बात हुई! इस कहानी को आज के विज्ञापन जगत में उपयोग किया जा सकता है और कोई भी माल बेचने का स्क्रिप्ट तैयार किया जा सकता है। खैर, एक बच्चे वाले घरों में इन कुत्तों के होने से बच्चों में साथी के साथ सुख-दुःख व समय बांटने के ये माध्यम बन जाते हैं। और इसी बहाने बच्चों में बौद्धिक और सामाजिक विकास होता है और वो अकेलेपन से बच जाते हैं।
कुत्ते पालने का शौक गरीब और अमीर में बराबर से पाया जा सकता है। इसमें किसी और तरह का वर्गीकरण संभव नहीं है। प्रेम, सुरक्षा और अपनापन दोनों ही वर्गों के कुत्ते अपने-अपने मालिक को भरपूर देते हैं। फर्क सिर्फ इतना होता है कि गरीब का कुत्ता सूखी रोटी पर पलता है जबकि अमीर का कुत्ता बिस्कुट-दूध और गोश्त पर जिंदा होता है। हां, गरीब का कुत्ता मोहल्ले के लिए सामूहिक हो जाता है और ये सबके साथ में मिल-बैठकर जीना रहना सीख जाते हैं। जबकि अमीर का कुत्ता अकेले रहते-रहते अकेलेपन का आदी हो जाता है। इसी कारण से कई बार यह बिगड़ैल और गुस्सैल भी हो जाते हैं और बड़ी-बड़ी कोठियों में आने वाले हर इंसान को नोचने के लिए तैयार रहते हैं। यह एक जंगली जानवर की हद तक बददिमाग बन जाते हैं। वैसे अमूमन अमीर मालिक इसे अपने कुत्ते की गुणवत्ता समझता है। तभी तो ज्यादा खूंखार होकर भौंकने पर डांटने की जगह उसे प्रेम करता है। किसी गरीब आगंतुक को काट ले तो उसे दुलारता है, पुचकारता है। यह सब देख कुत्ता और बिगड़ जाता है रईसजादे की किसी बिगड़ी औलाद की तरह। और फिर जिसे देखकर अच्छे-अच्छे बचने की कोशिश करते हैं। कुछ तथाकथित जागरूक मालिक, कानून से बचने के लिए कम अपने अहम् प्रदर्शन में ÷कुत्तों से सावधान’ का बोर्ड लगाना नहीं भूलते। मगर इसमें आने वाले मेहमान को सावधान करने की कम डराने की भावना का प्रदर्शन अधिक होता है। ऐसा नहीं कि गरीब के कुत्तों में वफादारी नहीं होती, क्वालिटी नहीं होती। कई बार देसी कुत्ते भी बेहद खूबसूरत और आकर्षक लगते हैं। रईस के कुत्ते भी इन्हें देखकर पास जाने की कोशिश करते हैं। इनके बीच कोई भेदभाव नहीं होता और वे प्रेम के लिए किसी दीवार को नहीं मानते। मनुष्य के बीच उत्पन्न होने वाले प्रेम के दुश्मनों को इन दृश्यों को दिखाया जाना चाहिए। कुत्ते पालने के ढंग से समाज की आर्थिक अवस्था का अध्ययन भी किया जा सकता है। कौन कितना रईस है? पता लगाया जा सकता है। अत्यधिक रईस, अमूमन अपने वैभव का प्रदर्शन इनके माध्यम से भी करते हैं। किस घर का कुत्ता कितने महंगे साबुन-शेम्पू से नहाता है, कितनी बार डॉग पार्लर में जाता है, उनके कपड़े और कंबल-रजाई से उनके मालिक की हैसियत का पता चलता है। चाहे तो इनकम टैक्स वाले इस प्रदर्शन का सदुपयोग कर सकते हैं।
एक वरिष्ठ नौकरशाह दोस्त के पास शायद डेढ़ दर्जन कुत्ते हैं। मेरी उनसे मित्रता साहित्य लेखन के कारण हुई थी। लेकिन अब ये उनके कुत्ते-प्रेम को देखकर बढ़ गई है। हरेक कुत्ते के लिए उनकी आलीशान कोठी में अलग-अलग, उनके रहने-खाने-सोने का स्थान, उनके आकार, उनकी फितरत, उनके गुणों-अवगुणों को देखते हुए बनायी गई है। छोटे व मासूम कुत्ते घरों के अंदर पनाह लेते हैं। जबकि खूंखारों को अलग-अलग रखा जाता है। यह सब अलग-अलग नस्ल के हैं। इनकी देखभाल करना अपने आप में एक पूरा काम है। एक दिन वार्तालाप में पता चला कि एक कुत्ते को एक आंख से दिखना बिल्कुल बंद हो गया था। वेटरिनेरी डाक्टर ने हाथ खड़े कर दिये थे। कुत्ता दिनभर इधर-उधर दीवार से टकराता और पागल हो रहा था। हारकर उन्होंने अपने एक नेत्र चिकित्सक दोस्त की मदद से व्यक्तिगत तौर पर उसकी आंखों का आपरेशन करवाया और वेटरनरी डाक्टर की मदद से स्थानीय स्तर पर एक लेंस फिट करवा दिया। आज वह कुत्ता देख सकता है। घर की मैडम को उस कुत्ते से सर्वाधिक प्यार है बाकी सभी सुंदर और सुडौल दिखने वाले कुत्तों से अधिक। ऐसा संवेदनशीलता मैंने अमूमन उनमें पूर्व में नहीं देखी थी। घर के बुजुर्गों से लेकर नौकरों के लिए भी नहीं। बहरहाल, आईएएस-आईपीएस से भरी उस कॉलोनी में इन्हीं कुत्तों के कारण उनकी विशिष्ट पहचान है। ‘कुत्ते वाले साहब’ पूछने पर, कोई भी उनके घर का पता बता देगा। पैसा, ताकत, शोहरत होने के बावजूद किसी खास पहचान के लिए परेशान आज की दुनिया में क्या ये कम फायदे का सौदा है?