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आधुनिक युग में क्वालिटी मनुष्य
विगत सप्ताह मोहाली स्थित ‘टोटल क्वालिटी मैनेजमेंट’ संस्थान के वार्षिक कार्यक्रम में शिरकत करने का सुअवसर मिला। यहां कालेज के जमाने का मित्र मुख्य कार्यकारी अधिकारी है। प्रधानाचार्य कह सकते हैं। यह अपनी तरह का विशिष्ट संस्थान है। कुछ ही वर्षों में इस क्षेत्र में इसने अपनी पहचान बनायी है। प्रत्येक वर्ष यहां, विभिन्न उद्योगों के बीच क्वालिटी केंद्रित प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता रहा है जिसमें आसपास की इंडस्ट्रीज भाग लेती रही हैं। पुरस्कार छोटे-बड़े-मध्यम वर्ग के उद्योगों में अलग-अलग दिये जाते हैं। भाग लेने वाली प्रत्येक इंडस्ट्री के प्रतिनिधि, अपनी बात को आंकड़ों व अनुभव में प्रस्तुत करने के अतिरिक्त उनकी फैक्टरी में उपयोग में लाये जाने वाले विभिन्न व्यवस्थाओं से होने वाले फायदों पर पेपर पढ़ते हैं। प्रोजेक्ट रिपोर्ट रखी जाती और फिर कार्यक्रम के जजों व विशेषज्ञों के द्वारा विजेता व उपविजेता की घोषणा होती। आसपास के क्षेत्र के विशिष्ट अतिथिगण, जिनका संबंध इंडस्ट्री, कार्पोरेट सेक्टर एवं सेवा के व्यवसाय से जुड़ा है, आमंत्रित होते। देर शाम एक बेहतरीन पार्टी होती, जिसमें उत्तम किस्म की शराब और स्वादिष्ट व्यंजन परोसा जाता। कार्पोरेट व व्यावसायिक पार्टियों के लिए यह अब प्रत्येक कार्यक्रम का स्थायी हिस्सा बन चुका है। यहां खाने-पीने के साथ-साथ आपस में मेलजोल किया जाता है। कई आयोजक तो इसे नेटवर्किंग डिनर तक कहते हैं। इस बोल्ड स्वीकारोक्ति पर कई बार मुझे हैरानी होती है। बहरहाल, सीमित भीड़ होने के कारण यह कार्यक्रम मेरे लिए आरामदायक और मनोरंजक था और इस चक्कर में सामान्य से अधिक खाया जाता है। बढ़िया दोस्त और बेहतरीन दावत, एक साथ उपलब्ध हो तो शाम यादगार बन जाती है। वरना लेखक होने के कारण कार्पोरेट जगत के माहौल में दिल नहीं लगता। यहां साहित्य, दर्शन और कला की बात करना मूर्खता होगी, इसलिए अपनी सही पहचान दोस्त तक ही सीमित रखता हूं। हां, मौका पड़ने पर दो-चार शायरी सुनाकर, महफिल में रंग जमा लेता हूं। वैसे टाईधारी मैनेजमेंट की फौज और कार्पोरेट की चकाचौंध सामान्य इंसान में हीन भावना उत्पन्न कर सकती है।
क्वालिटी अर्थात गुणवत्ता। यह शब्द आते ही उत्कृष्टता का स्वर उभरता है। उच्चस्तरीय कार्य या वस्तु। यहां प्रयोग में आने वाले माल की शुद्धता भी जेहन में उभरती है। वस्तु के सही नाप-तोल का होना प्रमुख पैमाना बन जाता है। ठीक इसी तरह विश्वसनीयता भी यहां जुड़ जाती है। तकनीकी व सेवा के क्षेत्र में विशेष तौर पर सुरक्षा और वातावरण में सकारात्मकता भी अपेक्षित नजर आती है। मगर क्या उपरोक्त भावना तक ही क्वालिटी के क्षेत्र को सीमित किया जाना चाहिए? शायद नहीं। क्या क्वालिटी शब्द का संदर्भ सिर्फ मशीन, उत्पादन और बाजार के माल तक ही सीमित है? नहीं। क्या क्वालिटी की विचारधारा को विदेशी मान लिया जाना चाहिए? नहीं। यह तो जीवन के हर क्षेत्र में है। आदिकाल से। कह सकते हैं कि क्वालिटी जीवन जीना हर एक जीवित मानव का सपना और उद्देश्य होता है। और इसी की कोशिश में वो तमाम उम्र निरंतर प्रयासरत रहता है।
आधुनिक यांत्रिकी युग में क्वालिटी शब्द के आते ही आम भारतीय के मन में जापान का नाम जरूर उभरता होगा। वहां बनाए जाने वाले इलेक्ट्रॉनिक सामान में इसे प्रमुखता से लिया जाता रहा है। इलेक्ट्रॉनिक माल के उत्पादन में अति सूक्ष्मता के कारण बिना गुणवत्ता नियंत्रण के सफल होने की कल्पना करना भी व्यर्थ है। शायद यही कारण है जो आधुनिक क्वालिटी की अवधारणा जापान और आसपास के क्षेत्र में पूरी समग्रता के साथ पैदा हुई, बढ़ी और फैली-फूली। समय के साथ भारतीय उत्पादन संस्थाओं में भी क्वालिटी सर्कल के युग का पदार्पण हुआ। हर असेम्बली लाइन, प्रोडक्शन यूनिट, पैकिंग व डिस्पैच के साथ क्वालिटी शब्द भी जुड़ जाता। कुछ अनुभवी व प्रशिक्षित वर्कर और अधिकारियों को चुनकर एक ग्रुप बनाया जाता, जो अपने विभाग में क्वालिटी के नाम पर सुझाव देते। यह अपने कार्य में दक्ष होते और इनके सुझाव व्यवहारिक होते। धीरे-धीरे इसका विस्तार क्वालिटी कंट्रोल से टोटल क्वालिटी मैनेजमेंट की ओर हुआ। जीवन पद्धति में तो इसका अनुसरण लोग न जाने कब से कर रहे होंगे। मगर पाठ्यक्रम में टोटल क्वालिटी मैनेजमेंट का जनक डब्ल्यू एडवर्ड डेमिंग को कहा जाता है। और उनके द्वारा बताए गए मूल सिद्धांत में उत्पादन-सेवा के दौरान होने वाली त्रुटियों को न्यूनतम संभव तक लाना/सप्लाई चेन मैनेजमेंट को चुस्त व दुरुस्त करना/संयंत्रों का आधुनिकीकरण और वर्कर/निरीक्षक को उच्च श्रेणी की ट्रेनिंग। यह सच है कि इससे न केवल बेहतर माल का उत्पादन होता है परिणामस्वरूप बाजार में विश्वसनीयता भी स्थापित होती है।
बाजार के पूर्ण व्यवसायीकरण के पूर्व से ही हमारे यहां भी कुछ ब्रांड अपनी क्वालिटी के कारण जाने जाते थे। यह सिर्फ अपने नाम से बाजार में खूब बिकते थे। इनकी उत्तम गुणवत्ता पर इतना विश्वास होता कि कीमत के ज्यादा होने पर भी खरीदने वाले को कोई कष्ट नहीं होता। वह बड़ी शान से खरीदता। यह उसके संतोष का कारण भी बनता। बाजार में इस तरह के ब्रांड की धाक होती। घर-परिवार-समाज में खरीदने वाले को यह विशिष्ट होने की पहचान करवाता। इन ब्रांडों के द्वारा गुणवत्ता के पैमाने निर्धारित होते और दूसरों को इनका अनुसरण करना पड़ता। सीधी-सी बात थी उन दिनों गुणवत्ता के होने पर सस्ता होना जरूरी नहीं था और महंगा होने पर भी यह खूब बिकता। धीरे-धीरे यही गुणवत्ता दूसरों के द्वारा भी प्राप्त की जाने लगी और फिर प्रारंभ हुई प्रतिस्पर्द्धा, जिसने कीमतों को भी कम किया। उपरोक्त संस्थानों की उपयोगिता यहीं से प्रारंभ होती है। अब तो क्वालिटी का मुद्दा बाजार की हर दुकान में पाया जाने लगा है। सर्विस सेक्टर में, शिक्षा में, मीडिया में। यहां तक कि अस्पताल की सेवा में भी, दवाइयों पर तो पहले ही क्वालिटी कंट्रोल था, जिसे यहां शुद्धता के उदाहरण के रूप में लिया जा सकता है। यही नहीं रेल, संचार और पोस्ट एंड टेलीग्राफ जैसे पारंपरिक शासकीय क्षेत्रों में भी इसने घुसपैठ की। अब तो हर प्रकार की दुकान, रेस्तरां और यहां तक कि आम ठेलों के लिए भी क्वालिटी शब्द जुड़ने लगा है। होली की पिचकारी से लेकर रक्षाबंधन की राखी भी क्वालिटी से पसंद की जाती है।
क्वालिटी कंट्रोल से न केवल उत्कृष्ट होने का अहसास जागता है, इसके अनगिनत फायदे गिनाये जा सकते हैं। यह कारखानों में उत्पादन के दौरान होने वाले वेस्ट मटीरियल को कम से कम करता है तो दूसरी ओर बेहतरीन निरीक्षण एवं सामंजस्य के द्वारा उत्पादन में समय और मैन पॉवर की कटौती भी करता है। इस तरह से यह कीमत को नियंत्रित करने में भी उपयोगी और उत्पादन में लाभ को बढ़ाता है। पूर्व में इसे मॉनिटरिंग के रूप में लिया जाता। कालांतर में यह उत्पादन की प्रक्रिया का महत्वपूर्ण अंग बन गया। क्वालिटी का शब्दार्थ भावार्थ में जाते ही गुणवत्ता से निकलकर शुद्धता की ओर विस्तार पाता है। पीने के पानी की बोतल में जल का शुद्ध होना उसके क्वालिटी कंट्रोल का प्रमुख पैमाना है। यह कहना गलत होगा कि क्वालिटी ने सिर्फ बाजार और व्यापार को ही प्रभावित किया है। यह युद्ध जीतने के लिए भी उतना ही आवश्यक है। इतिहास साक्षी है कई सेनाएं अपनी उत्तम हथियारों के कारण दुश्मन सेना पर भारी पड़ी। चीनी उपभोक्ता सामान की देश में सस्ते दाम पर बहुतायत में उपलब्धता होने के बावजूद क्वालिटी शब्द ने ही उसे कहीं न कहीं रोक रखा है। अन्यथा विश्व के बाजार में इससे प्रतिस्पर्द्धा कर पाना मुश्किल होता। यकीनन क्वालिटी के लिए न केवल अनुशासित वर्कर, बल्कि उनका सतर्क और संदर्भित होना भी आवश्यक है। इस युग में जहां कई फैक्टरियों में तमाम कार्य मशीन के द्वारा किए जाते हैं वहां गुणवत्ता प्राप्त होना सरल है। मगर किसी एक भी कर्मचारी के द्वारा लापरवाही से संपूर्ण क्वालिटी प्रक्रिया का सत्यानाश हो सकता है। एक तरह से यह टीम वर्क है। और यही कारण है कि क्वालिटी अपने आप में एक विचारधारा बनती जा रही है।
एक बार फिर प्रश्न उठता है कि क्या क्वालिटी शब्द को यहीं तक सीमित कर देना चाहिए? शायद नहीं। असल में उपभोग संस्कृति में घर-कपड़े और खाने की क्वालिटी के साथ-साथ अपने वाहन और मोबाइल व अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरण की क्वालिटी पर कड़ी नजर रखने वाला उपभोक्ता अपने जीवन की गुणवत्ता पर ध्यान नहीं दे रहा। सुंदर आकर्षक वातानुकूलित स्कूल-कालेज की बिल्डिंग बनाने वाले मैनेजमेंट का ध्यान पढ़ाई जाने वाली पाठ्यक्रम की क्वालिटी पर क्यूं नहीं जाता? अच्छी-अच्छी गाड़ियों, सुंदर-सपाट चौड़ी सड़कों की चाहत रखने वाले आज के आधुनिक मनुष्य का ध्यान ट्रैफिक के नियम के पालन की ओर क्यूं नहीं जाता? वह क्वालिटी ड्राइविंग क्यूं नहीं करना चाहता? विकास की बात करना आज फैशन है मगर आचरण में शुद्धता और अपनी दिनचर्या को भूल/त्रुटि रहित बनाने पर ध्यान नहीं जाता। आधुनिक मानव अपने सामाजिक-पारिवारिक व्यवस्थाओं, रिश्तों और वातावरण को श्रेष्ठतम स्तर पर ले जाने की क्यूं नहीं सोचता? असल में समाज में भी क्वालिटी कंट्रोल की आवश्यकता है। उसी तरह धर्म के क्षेत्र में क्वालिटी धर्मगुरुओं की आवश्यकता है। राजनीति से क्वालिटी शब्द नदारद होता नजर आता है। मीडिया में तो क्वालिटी के नाम पर बहुत कुछ अपेक्षित है। विज्ञान व तकनीकी ने टेलीविजन का सेट तो सुंदर और क्वालिटी वाला बना दिया, मगर देखे और दिखाये जाने वाले कार्यक्रमों की क्वालिटी का क्या करें? समाचारपत्र तो आकर्षक छपने लगे लेकिन समाचारों का क्वालिटी कंट्रोल समाप्त होता नहीं लगता?
एक दिन किराने की दुकान में महीने का राशन लेने के दौरान न जाने क्यों मन में शंका उत्पन्न हुई थी। खाने की हर चीज में मिलावट का डर खौफ तक पहुंच चुका है। पहले, बाजार में बनी हुई चीजों में मिलावट के डर से घर में ही पकवान बनाने की बात की जाती थी लेकिन अब तो कच्चे माल में भी मिलावट का डर बहुत अधिक तक सत्य हो चुका है। चीनी-गुड़ से लेकर मसाला-दाल-आटा-तेल और नमक जैसी जरूरी रोजमर्रा की चीजों में भी शुद्धता वाली बात नहीं रही। यहां पर क्वालिटी अब पैकिंग की सुंदरता और वातानुकूलित दुकान तक सीमित होकर रह गई है। सामान देने वाले कर्मचारी से न जाने क्यों मैं यूं ही कह गया कि सामान उसी कंपनी का देना जो सही शुद्ध और क्वालिटी का हो। सुनकर कर्मचारी ने बड़ी मासूमियत से जवाब दिया था, ‘अब आदमी तो सच्चा रहा नहीं, सामान की उम्मीद आप कैसे कर सकते हो?’ यह मेरे लिये चौंकाने वाला था। क्वालिटी विचारकों को इस पर भी चिंतन करने की आवश्यकता है।