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रचनात्मकता में सत्यम् शिवम् सुंदरम्
दुनिया की सबसे खूबसूरत चीज पूछने पर तरह-तरह के जवाब मिलेंगे। यहां व्यक्तिगत पसंद-नापसंद का मामला बनता है। लेकिन अद्भुत शब्द जोड़ते ही तकरीबन सभी जवाब में प्रकृति केंद्र में आ जाएगी। और फिर इनमें पर्वत की विशालता हो सकती है। इठलाती बलखाती नदी। झरझर गिरते झरने। किसी को समुद्र की गहराई अच्छी लग सकती है। आकाश में बिखरे असंख्य तारे। चंद्रमा भी सुंदर लग सकता है। फल-फूल, पेड़-पौधों में तो एक से एक कई प्रकार हैं। किसी को गुलाब का फूल अच्छा लगता है तो किसी को चमेली की सुगंध। इसमें भी कई प्रजातियां हैं। मामला इतना उलझ जाता है कि गुलाब में भी किसी को लाल सुर्ख बड़ा गुलाब अच्छा लगता है तो किसी को थोड़ा मुश्किल से मिलने वाला काला गुलाब। कुछ को वर्षा ऋतु अच्छी लगती है तो कइयों को ठंड का मौसम। जितने लोग उतनी पसंद। कइयों की राय में मानव स्वयं सृष्टि की सबसे अद्भुत रचना है। तो कइयों का इनमें भी औरत विस्मित करती है। मगर यहां भी नारी को अलग-अलग रूप में पसंद किया जाता है। कई इसे जननी के रूप में देखते हैं तो कई जीवनसाथी के रूप में। गोरे रंग पर मर-मिटने की कहानी चाहे जितनी भी सुना दी जाये लेकिन आज भी काले रंग पर मरने वालों की संख्या कम नहीं। ऐसे लोग भी मिलेंगे जो जंगली जानवरों और पक्षियों में नैसर्गिक सुंदरता खोजते हैं। सुंदर-सुंदर तितलियां और छोटे-छोटे कीड़े-मकोड़ो के आकर्षक रूप-सौंदर्य को देखने के बाद कुछ और नहीं रह जाता। कुछ लोगों को तो शेर-चीता की शक्ति व ताकत पसंद आती है तो कई लोग कोयल की सुरीली आवाज के दीवाने देखे जा सकते हैं। अर्थात संक्षिप्त में कहें तो एक राय बन नहीं पाती।
कह सकते हैं कि संपूर्ण सृष्टि अपने आप में बेहद खूबसूरत है। यह रहस्यमय भी है। लेकिन नश्वर है। ये भौतिक रूप में परम सत्य नहीं, चूंकि स्थिर नहीं। जिस तरह से इंसान की पसंद स्थायी नहीं, सृष्टि में भी सब कुछ परिवर्तनशील है। यहां हर क्षण किसी नयी रचना का जन्म होता रहता है। ये सभी अपने आप में अनोखे और अद्भुत हैं। सृष्टि की इन रचनाओं में, तारे-ग्रह, बह्मांड, तारामंडल, सभ्यता, जीव-जंतु, उनकी प्रजाति, कुछ भी हो सकती है। संक्षिप्त में, समय के पैमाने पर जिस रफ्तार से जन्म होता रहता है, साथ ही धीरे-धीरे पुराना लुप्त होता चला जाता हैं। अर्थात यह सृष्टि सुंदर तो है मगर श्रेष्ठ नहीं चूंकि शाश्वत नहीं। और तभी ईश्वर की कल्पना आती है। शिव तो परम सत्य भी हैं और अति सुंदर भी हैं और सर्वशक्तिमान भी। मगर फिर उनके साक्षात् दर्शन? यहां पर तर्क, व्याख्या, धर्म बेवजह कूद पड़ते हैं। इनसे परे होकर कल्पना करें तो जो दिखाई नहीं देता, उसकी कर्म व क्रिया, उसके अस्तित्व की पहचान व अहसास कराते हैं। अर्थात यहां सृष्टि की रचना प्रक्रिया में हम ईश्वर को देख सकते हैं। अब कल्पना करें तो पायेंगे कि सृष्टि की रचनात्मकता अपने आप में सबसे खूबसूरत है। सुंदरम्। यह प्रक्रिया परिवर्तनशील नहीं। यह क्रिया अपने आप में, संपूर्णता में नहीं बदल रही। सतत जारी है। निरंतर। यहां पत्थर, पेड़, नदी, तालाब, आदमी, औरत, तारमंडल, ब्रह्मांड यह सब तो सृष्टि की भिन्न-भिन्न रचनाएं मात्र हैं। लेकिन इन सबके उत्पन्न होने की, प्रकट होने की, रचनात्मक प्रक्रिया एक ही है। जिस तरह से साहित्य में कई तरह के उपन्यास, कहानी, कविताओं की रचना होती रहती है और हर एक पाठक की अपनी पसंद होती है, ठीक इसी तरह से प्रकृति की हर एक रचना भी अलग-अलग व्यक्ति को अलग-अलग ढंग से मोहित करती है। ये रचनात्मकता, साहित्य में इसे लेखन कहेंगे, अपने आप में अनोखी, विशिष्ट और अद्भुत है। हर रचना के पीछे सृजन की शक्ति है। यह रचनात्मकता ही असल में सबसे खूबसूरत है। साहित्य में रचे गए एक-एक शब्द गहरे और अर्थवान बन जाते हैं मगर इनको ऊर्जा लेखन से ही मिलती है। अक्षर शब्दों के माध्यम से नई रचना को जन्म देते हैं और ये शब्द ही सौंदर्य के साथ-साथ क्रांति का बीज भी बन जाते हैं।
रचना तो कई हो सकती हैं। लेकिन इनमें निहित रचनात्मकता समरूप है, एक ही होती है। ये रचनाएं, अंतिम प्रोडक्ट, समय के पदचिह्नों पर धूमिल हो सकती हैं। जबकि रचनात्मकता कभी पुरानी नहीं होती। रचनाएं पसंद-नापसंद की जा सकती हैं, नये के आते ही पुराने का विस्थापन होता रहता है, मगर रचनात्मकता पर कोई बहस नहीं की जा सकती। आरोप नहीं प्रत्यारोपित किया जा सकता। रचनाएं परिवर्तनशील हो सकती हैं। ये स्थायी नहीं। कोई दो रचनाएं कभी एक समान कदापि नहीं हो सकती। लेकिन रचनात्मकता के अंदर निरंतरता और परिवर्तनशीलता उसका अपना गुण है। स्वभाव है। मिजाज है। अवयव है। मगर स्वयं में ये स्थिर है। इसी रचनात्मकता को ईश्वर का नाम दिया जा सकता है। सृष्टि तो एक रचना मात्र है, लेकिन सृष्टि के निर्माण की प्रक्रिया, रचनात्मकता का एक उदाहरण मात्र, बेहद अनोखी प्रक्रिया है। जो न जाने कब से जारी है। हर पल, हर क्षण, ब्रह्मांड में हर जगह, निरंतर अपनी गति से चल रही है। अनंतकाल से अनंत तक। शून्य में भी पदार्थ में भी।
अगर आपको ईश्वर के सचमुच दर्शन करने हों तो सृष्टि नहीं, सृष्टि के निर्माण प्रक्रिया को देखिए। उसके रचनाधर्म के अंदर झांकिए। बीज से पौधा व पौधे को पेड़ बनता हुआ देखिए। एक बच्चे के जन्म की प्रक्रिया को देखिए। इंसान को मत देखिए, इंसान के बचपन से जवान और जवान से प्रौढ़ होते हुए संपूर्ण जीवन-चक्र को देखिए। नन्ही-सी मासूम बालिका को, यौवन सुंदरी और मां जननी बनते देखिए। आपका सिर अपने आप ही आदर में झुक जाएगा। पेड़ों पर फल लगते हुए देखिए। कली से फूल बनते देखिए। अंडे से चूजे को निकलते हुए देखिए। फिर चाहे वो शेर का बच्चा हो या गाय का, कौवे का काला या कबूतर का गोरा, ये सब अपनी ओर ध्यान आकर्षित कर लेते हैं। भावुक मत होइये, मौत को करीब से देखिए। यह विनाश नहीं, मात्र एक प्रक्रिया है। सृष्टि की रचनात्मकता का एक अंग है। संभव हो तो किसी ग्रह को नष्ट होते देखिए। तारे को टूटते देखिए। ये डर के आगे अद्भुत लगेगा। अंतरिक्ष की ये फुलझड़ियां, आपको सतत निहारने के लिए मजबूर कर देंगी।
इस रचनात्मकता की खूबसूरती को हम अपने भीतर ही नहीं, आसपास भी देख सकते हैं। मां, बहन, पत्नी और कहीं-कहीं कुछ एक पिता या दोस्त, जो भोजन बनाने में दिलचस्पी रखते हैं, उनसे किसी व्यंजन बनाने के बाद होने वाली संतुष्टि के बारे में पूछिये? कुम्हार जब कच्ची मिट्टी से बर्तन बनाता है, फिर चाहे वो आकार में सुंदर और मजबूत हो न हो, मगर उसके चेहरे के संतोष को देखा जा सकता है। बढ़ई के फर्नीचर बनाने पर, उसके अंदर छिपी रचनात्मकता को समझा जा सकता है। पंछी का घोंसला बनाना। छोटी-छोटी चींटियों को सदैव काम में भागते देखना। मधु से भरा हुआ मधुमक्खी के छत्ते को बनते हुए देखिए। हर एक जगह रचनात्मकता में कलात्मकता की एक अनूठी कहानी है। जंगल की शांत लेकिन ऊबड-खाबड़ पगडंडियों में घूम जाइए, कहीं न कहीं, कुछ न कुछ विशिष्ट स्वरूप में सृजन होते जरूर मिल जाएगा। नदी पर पुल बनाते इंजीनियर से लेकर मजदूर से पूछिए, पुल बनने पर कैसा लगता है? अपने लिये एक सुंदर घर बनाने के जुनून के बारे में आम आदमी से पूछिए। एक कविता के जन्म की प्रक्रिया के दौरान उत्पन्न कवि की भावनाओं को स्वयं कवि शब्दों में बयान नहीं कर सकता। कागज के टुकड़े पर, चंद शब्दों के साथ खेलते हुए, काटा-पीटी करना, शब्दों को जोड़ना, काटना फिर लिखना, साहित्य सृजन के अंदर छिपी महान रचनात्मकता का अंश है। मजा यात्रा में है मंजिल पर पहुंचने में नहीं। राहगीर से राह का वर्णन करवाइए, पड़ाव का नहीं। प्रेमी को जो आनंद प्रेम करने के दौरान प्राप्त होता है वो शायद कहीं और नहीं। यहां आनंद प्रेम करने में है, प्रेमी-प्रेमिका में नहीं। संगीतकार से पूछिए, एक गीत की फाइनल रिकार्डिंग के बाद कैसा लगता है? गायन के दौरान गायक-गायिका के चेहरे पर उभरते अलौकिक सौंदर्य को देखिए। फिल्म निर्माण के अनुभव फिल्म निर्देशक से पूछिए। सिर्फ मुस्कुराएंगे, कुछ कह नहीं पाएंगे। यह सब हम जाने-अनजाने रोज ही देखते-करते हैं। मगर कभी रुककर गौर नहीं करते। अगर आपको सत्यम् शिवम् में सौंदर्य के दर्शन करने हों तो इस रचनात्मक प्रक्रिया को एक बार ध्यान से देखिएगा, कण-कण में ईश्वर नजर आएंगे।
ईश्वर को इस रचनात्मकता का ही दूसरा नाम कहा जा सकता है। यह निराकार है। इसे हम अपने रूप-स्वरूप में, अपनी-अपनी समझ से, अपना-अपना नाम और चेहरा दे सकते हैं। मगर इसको परिभाषित करते ही हम इसे सीमित कर देते हैं। इसकी असली पहचान खत्म हो जाती है। क्योंकि ईश्वर स्वयं में कोई एक रचना नहीं, रचनात्मकता है। वो स्वयं में सृजित भी है सृजन भी सृजनात्मकता भी। वह सतत है। इस निरंतर सृजन की अनंत शक्ति में अनुपम सौंदर्य है। यह अंतिम और प्रथम सत्य है। और इसीलिए शिवम् भी। जो अपनी इसी क्रियाशीलता के साथ हर जगह उपलब्ध है। हर समय उपस्थित है। यह समय के साथ नहीं चलते। समय इनके साथ चलता है और अस्तित्व में आता है। हम, मनुष्य, इसी सृजनता का अपने अंदर छोटा-सा अंश लिये, उस सर्वशक्तिमान से, हर क्षण जुड़े रहते हैं। और इस तरह से हम स्वयं में, परमात्मा की रचना (आत्मा) के रूप में, इस सृष्टि में विद्यमान हैं।