कवि-कथाकार मनोज सिंह से श्री बरिष्ठ साहित्यकार सुशील कुमार फुल्ल की बातचीत
Interview by Sushil Kumar Phul
प्रश्न 1: बंधन उपन्यास में आप ने जो समस्या उठाई है वह आम समस्या नहीं। इसके पीछे कोई विशेष कारण?
मनोज सिंह-इस प्रश्न का उत्तर सीचे रूप में इस तरह से भी दिया जा सकता है कि यह आम समस्या नहीं है इसीलिये उठाई गयी है। परंतु यह सत्य नहीं है। वर्तमान में मानसिक रोगियों की संख्या बहुत अधिक है और यह दिन पर दिन बढ़ती जा रही है। आप यूँ भी कह सकते हैं कि आज के वर्तमान भौतिक युग की यह देन है। हर दूसरे घर में यह किसी न किसी रूप में मिल जायेगी। सिर्फ इसकी तीव्रता में फर्क हो सकता है। इसके बावजूद भी इस पर बहुत कम लिखा गया है एवं बहुत कम जानकारियाँ है। समाज के इस अनछुये पहलू को, जिसने मुझे कहीं न कहीं जरूर स्पर्श किया है, मेरी ओर से छूने की यह कोशिश मात्र है।
प्रश्न 2: विक्रम और निकिता के सम्बन्धों को अमित जानता था, फिर भी उसने निकिता को स्वीकार किया?
वह अदिति से भी प्यार /विवाह बांध सकता था? मनोज सिंह जीवन की गति एवं दिशा पर किसी का भी नियंत्रण नहीं। भाग्य और भावनाओं पर मानव का बश नहीं, इनका अपना प्रभाव व प्रवाह होता है। घटनायें हमारे जीवन में घटित होती रहती है। अधिकांशतः हम मूक दर्शक बनकर उन्हें सिर्फ देखते रहते हैं। पीछे मुड़कर देखने एवं विश्लेषण करने पर दुर्घटना नाम दे दिया जाता है। जो कुछ अच्छा घटित होता है उसे सहर्ष स्वीकार करके आत्मविभोर होते रहते हैं और जो हमारे हित में नहीं उस पर पश्चाताप करके किस्मत का दिया मानकर दुःखी हो जाते हैं। यही जीवन है। अमित निकिता के सौंदर्य से आकर्षित था निकिता के लिये उसके मन में कोमल भावनायें थी विक्रम के निकिता के प्रति व्यवहार से वह कभी भी खुश नहीं था उन के संबंधों को लेकर उसमें सदैव एक अंत्द्ध रहता था। अदिति से वह कभी भी आकर्षित नहीं था। अतः वहाँ तो प्यार की कोई भी संभावना नहीं। फिर एक रात की घटना ने उसके जीवन को बदल डाला। और फिर उसकी संवेदनशीलता ने उसे इस रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित किया।
प्रश्न 3: मनोरोग उत्तराधिकार/वंश दर वंश मिलते/ चलते हैं ऐसी स्थिति में क्या यह उचित नहीं होगा कि ऐसे लोगों का विवाह ही न किया जाए ताकि आने वाली पीढ़ियां इस रोग से ग्रस्त न हो?
मनोज सिंहः-यह मानव और जीवन, दोनों के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण नहीं है। सभी को इस सुंदर जीवन का आनंद लेने का पूरा अधिकार है। मनोरोग के वंश दर वंश होने की संभावना अधिक होती है, शत प्रतिशत ऐसा सदैव हो, आवश्यक नहीं। फिर इस रोग को काफी हद तक ठीक भी किया जा सकता है प्रारंभिक अवस्था में उचित इलाज से तो रोगी के पूर्ण ठीक होने की संभावना बहुत प्रबल होती है। प्यार और विश्वास से सब कुछ संभव है। उपन्यास के अंत में इसी पहलू को दिखाने की कोशिश भी की गयी है। उपन्यास का पात्र अनिस्द्ध इस प्रश्न का सही जवाब हो सकता है।
प्रश्न 4: दर्जनी मोहल्ला उपन्यास का एक महत्वपूर्ण अंश है। यह कथा को गति देता है क्या यह आप का आत्मकथा अंश है?
मनोज सिंहः-दर्जनी मोहल्ला पूर्णतः काल्पनिक है। हाँ इस तरह के कई मोहल्ले हर दूसरे शहर में आम मिल जायेंगे। कल्पना का वास्तविकता से कहीं न कहीं संबंध अवश्य होता है। उपन्यास का कोई भी चित्रण जीवन की सत्यता से अछूता नहीं हो सकता। कल्पनायें वास्तविकता के षरात्ल से ही उड़ान भरती है।
प्रश्न 5: आप के मन में बुजुर्ग पात्रों के प्रति सहानुभूति है लेकिन बुजुर्ग पात्रों में कोई बोल्ड पात्र नहीं है। क्यों?
मनोज सिंहः-यह पूर्णतः सत्य नहीं है। हाँ मेरे मन में बुजुर्गों के प्रति सहानुभूति है और साथ ही साथ मेरी कल्पना का बुजुर्ग आदर्शवादी भी है। उसे वास्तविकता में भी अधिकांश बुजुर्ग शारीरिक परेशानियों एवं जीवन के लम्बे अनुभव और उतार चढ़ाव से समझौता वादी एवं शांति प्रिय हो जाते हैं। समाज को उन्हें सदैव आदर एवं सम्मान के साथ देखना चाहिये। परंतु जिस तरह से दुनिया में सभी बुजुर्ग शांत, समझौतावादी और सहनशील नहीं होते, उसी तरह से मेरे सभी बुजुर्ग पात्र भी ऐसे नहीं है। कई बुजुर्ग अलग-अलग प्रवृत्ति व स्वभाव के हैं। उनका मुख्य किरदार न होने से वे कई बार अपनी ओर पाटक का ध्यान आकर्षित नहीं कर पाते।
प्रश्न 6: अधिकांश पात्र सदाशय है। क्या आपने सोच समझकर सकारात्मक होने का प्रयत्न किया है। क्या ऐसा करने से उपन्यास की प्रभावान्वित फुस्सी नहीं हो जाती?
मनोज सिंहः यह पूर्णतः असत्य है। उपन्यास की नायिका स्वयं मानसिक रोगी होने के कारण पूर्णतः नकारात्मक हैं। उस के व्यवहार से तो नायक का संपूर्ण जीवन ही नरक बन जाता है। साथ ही विक्रम जहाँ खलनायक है नहीं कमला एवं नायिका के परिवार को हम सकारात्मक बिल्कुल भी नहीं मान सकते।
प्रश्न 7: आप ने रोगों एवं दवाइयों की खूब चर्चा की है? पाठक का रोगों में इन्ट्रेस्ट हो सकता है। लेकिन दवाइयों में नहीं और मुश्किल नाम भूल जाते है क्या लेखक अपने मेडिकल ज्ञान का प्रदर्शन करना चाहता है। वोकैब्लरी क्यों नहीं दी गई?
मनोज सिंह-यह कहानी की मांग पर आवश्यकतानुसार दिया गया है वास्तविकता एवं मौलिकता के लिये यह आवश्यक था। नायक एवं नायिका के स्वयं डाक्टर होने एवं मेडिकल के पृष्ट भूमि के कारण, अस्पताल के विभिन्न दृश्य होने की वजह से यह स्वभाविक रूप में चर्चा में आया है। पाटक का बहुत बड़ा वर्ग जो इस परेशानियों से कहीं न कहीं जूझ रहा है, उनके ज्ञान एवं अभिज्ञता के लिये भी यह आवश्यक था। जिन्हें इसकी आवश्यकता नहीं उन्हें इसे याद करने की जरूरत नहीं एवं जो इस दौर से गुजर रहे हैं वे इसमें से कुछ जरूर ढूंढना चाहेंगे। शब्दावली देने का सुझाव स्वागत योग्य है अगले संस्करण में अवश्य सम्मिलित किया जायेगा।
प्रश्न 8: उपन्यास की प्रेरणा कहां से मिली?
मनोज सिंहः-कई मानसिक रोगी के परिवार को बिखरते हुये नजदीक से देखा है। लेखक सदैव अपने आस-पास घटी घटनाओं से प्रेरित होता है। उनके दुःख ने ही लिखने के लिये प्रेरित किया
प्रश्न 9: उपन्यास में पहाड़ एवं मैदान ......... दोनों कथा में संयोजित हो गए कोई कठिनाई कहानी चित्रण में?
मनोज सिंह:- बिल्कुल नहीं।
प्रश्न 10: आप ने कविता भी लिखी है 'चन्द्रिकोत्सव', उपन्यास लेखन सुगम है या कविता?
मनोज सिंहः दोनों की अपनी विशेषतायें है और अपनी विशाल दुनिया । उपन्यास लिखने में अधिक परिश्रम, मेहनत, समय और ऊर्जा लगती है। जबकि काव्य में ख्वाबों की, संगीत की, लयबद्धता एवं शब्द चयन की प्रमुखता होती है।